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प्रेमाश्रम

शीलमणि ने आ कर पूछा, दोपहर को कहाँ रह गये थे?

ज्वाला—बाबू प्रेमशंकर का मेहमान रहा। वह अभी देहात में ही हैं।

शील—अभी तक बीमारी का जोर कम नही हुआ?

ज्वाला—नहीं, अब कम हो रहा है। वह पूरे पन्द्रह दिन से देहातो मे दौरे कर रहे हैं। एक दिन भी आराम से नहीं बैठे। गाँव की जनता उनको पूजती है। बड़े-बड़े हाकिम का भी इतना सम्मान न होगा। न जाने इस तपन मे उनसे कैसे वहाँ रहा जाता है। न पंखा, न टट्टी, न शर्बत, न बर्फ। बस, पेड़ के नीचे एक झोपडे में पड़े रहते है। मुझसे तो वहाँ एक दिन भी न रहा जाय।

शील—परोपकारी पुरुष जान पड़ते हैं। क्या हुआ, तुमने मौका देखा?

ज्वाला—हाँ, खूब देखा। जिस बात का सन्देह था वही सच्ची निकली। ज्ञानशंकर का दावा बिल्कुल निस्मार है। उसके मुख्तार और चपरासियों ने मुझे बहुत कुछ चकमा देना चाहा, लेकिन मैं इन लोगो के हथकंडों को खूब जान गया हूं।बस हाकिमो को कोन्ना दे कर अपना मतलब निकाल लेते है। जरा इस भलमसाहब को देखो कि असामियों के तो जान के लाले पड़े हुए है और इन्हें अपने प्याले भर खून की धुन सवार हैं। इतना भी नही हो सकता कि जरा गांव में जा कर गरीबों की तसल्ली तो करते। इन्हीं का भाई है कि जमीदारी पर लात मार कर दीनो की निस्स्वार्थ सेवा कर रहा है, अपनी जान हथेली पर लिए फिरता है। और एक यह महापुरुष है कि दोनो की हत्या करने से भी नहीं हिचकते। मेरी निगाह में तो अब इनकी आधी इज्जत भी नहीं रही, खाली ढोल हैं।

शील—तुम जिनकी बुराई करने लगते हो, उसकी मिट्टी पलीद कर देते हो। मैं भी आदमी पहचानती हूँ। ज्ञानशंकर देवता नहीं, लेकिन जैसे सब आदमी होते हैं वैसे ही वह भी है। खामख्वाह दूसरो से बुरे नहीं।

ज्वाला—तुम उन्हें जो चाहो समझो, पर मैं तो उन्हे क्रूर और दुरात्मा समझता हूँ।

शील—तब तुम उनका दावा अवश्य ही खारिज कर दोगे?

ज्वाला—कदापि नही, मैं यह सब जानते हुए भी उन्ही की डिग्री करूंगा, चाहे अपील से मेरा फैसला मंसूख हो जाय।

शील—(प्रसन्न हो कर) हाँ, बस मैं भी यही चाहती हूँ, तुम अपनी-सी कर दो, जिसमे मेरी बात बनी रहे।

ज्वाला—लेकिन यह सोच लो कि तुम अपने ऊपर कितना बड़ा बौझ ले रही हो। लखनपुर में प्लेग का भयकर प्रकोप हो रहा है। लोग तबाह हुए जाते हैं, खेत काटने की भी किसी को फुरसत नहीं मिलती। कोई घर ऐसा नही, जहाँ से शोक-विलाप की आवाज न आ रही हो। घर के घर अंधेरे हो गये, कोई नाम लेनेवाला भी न रहा। उन गरीबो मै अब अपील करने की सामर्थ्य नही। ज्ञानशंकर डिग्री पाते ही जारी कर देंगे। किसी के बैल नीलाम होगे, किसी के घर बिकेंगे, किसी की फसल खेत में खड़ी-खडी कौडियो के मोल नीलाम हो जायगी। यह दीनो की हाय किस पर पड़ेगी? यह