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प्रेमाश्रम

खून किस की गर्दन पर होगा? मैं बदनामी से नही डरता, लेकिन अन्याय और अनर्थ से मेरे प्राण कांपते हैं।

शीलमणि यह व्याख्यान सुन कर काँप उठी। उसने इस मामले को इतना महत्वपूर्ण न समझा था। उसका मौनव्रत टूट गया, बोली, यदि यह हाल है तो आप वही कीजिए जो न्याय और सत्य कहे। मैं गरीबों की आह नहीं लेना चाहती। मैं क्या जानती थी कि जरा-से दावे का यह भीषण परिणाम होगा?

ज्वालासिंह के हृदय पर से एक बोझ सा उतर गया। शीलमणि को अब तक वह न समझे थे। बोले, विद्यावती के सामने कौन-सा मुँह ले कर जाओगी?

शीलमणि-विद्यावती ऐसे क्षुद्र विचारों की स्त्री नहीं है, और अगर वह इस तरह मुझसे रूठ भी जाय तो मुझे चिन्ता नहीं। मैत्री के पीछे क्या गरीबों का गला काट लिया जाय? मैं तो समझती हूँ वह ज्ञानशंकर से चिढ़ती है। अब कभी उन्होंने मुझसे इन दावों की चर्चा की है वह मेरे पास से उठ कर चली गई हैं। उनकी माया-लिप्सा मुझे एक आँख नहीं भाती। दावा खारिज होने की खबर सुन कर वह मन में प्रसन्न होगी।

ज्वाला–उस पर आप का दावा है कि गायत्री के इलाके का प्रबन्ध करेंगे। उनकी इनसे एक दिन भी न निभेगी। वह बड़ी दयावती है।

शीलमणि—दावा खारिज करने पर वह अपील कर दें तो?

ज्वाला—हाँ, बहुत संभव हैं, अवश्य करेंगे।

शील—और वहा से इनका दावा बहाल हो सकता है?

ज्वाला—हाँ, हो सकता हैं।

शील—तब तो वह गरीब खेतिहरों को और भी पीस डालेंगे।

ज्वाला—हाँ, यह तो उनकी प्रकृति ही है।

शील—तुम खेतिहरों की कुछ मदद नहीं कर सकते?

ज्वाला—न, यह मेरे अख्तियार से बाहर हैं।

शील—किसानों को कहीं से धन की सहायता मिल जाय तब तो वह न हारेंगे?

ज्वाला—हार-जीत तो हाकिम के निश्चय पर निर्भर है। हाँ, उन्हें मदद मिल जाय तो वह अपने मुकदमे की पैरवी अच्छी तरह कर सकेंगे।

शील—तो तुम कुछ रुपये क्यों नहीं दे देते?

ज्वाला—वाह,जिस अन्याय से भागता हूँ, वही करू।

शील—प्रेमशंकर जी बड़े दयालु हैं। उनके पास रुपये हो तो वह खेतिहरो की मदद करें।

ज्वाला—मेरे विचार से वह इस न्याय के लिए अपने भाई से बैर न करें।

इतने मे बाहर कई मित्र आ गये। ग्वालियर का एक नामी जलतरगिया आया हुआ था। क्लब मे उसका गाना होनेवाला था। लोग क्लब चल दिये।

दूसरी तारीख पर ज्ञानशंकर का मुकदमा पेश हुआ। ज्वालासिंह ने फैसला सुना दिया। उनका दावा खारिज हो गया। ज्ञानशंकर उस दिन स्वयं कचहरी में मौजूद थे।