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प्रेमाश्रम

काश्तकारों की ओर से भी मुकदमें की पैरवी उत्तम रीति से की जा रही है तो उन्हें। अपनी सफलता में कुछ कुछ सन्देह होने लगा। उन्हें विस्मय होता था कि इनके पास रुपये कहाँ से आ गये? गौस खाँ तो कहता था कि बीमारी ने सभी को मटियामेट कर दिया है, कोई अपील की पैरवी करने भी न जायगा, एकतरफा डिगरी होगी। यह कायापलट क्योंकर हुई? अवश्य इनको कहीं न कहीं से मदद मिली है। कोई महाजन खड़ा हो गया है। शहर में तो कोई ऐसा नहीं दीख पड़ता, लखनपुर ही के आस पास का होगा। खैर, कभी तो रहस्य खुलेगा, तब बच्चू से समझूँगा। फैसले के दिन वह स्वयं कचहरी गये। अपील खारिज हो गयी। सबसे पहले गौस खाँ सामने आये। उनसे डपट कर बोले, क्यों जनाब, आप तो फरमाते थे इन सबों के पास कौड़ी कफन को नहीं है, यह वकील क्या यों ही आ गया?

गौस खाँ ने भी गर्म हो कर कहा, मैंने हजूर से बिलकुल सही अर्ज किया था, लेकिन मैं क्या जानता था कि मालिकों में ही इतनी निफाक है। मुझे पता लगता है कि हुजूर के बड़े भाई साहब ने एक हफ्ता हुआ कादिर को अपील की पैरवी के लिए एक हजार रुपये दिये है।

ज्ञानशंकर स्तम्भित हो गये। एक क्षण के बाद बोले, बिलकुल झूठ है।

गौस खाँ-हरगिज नहीं। मेरे चपरासियों ने कादिर खाँ को अपनी जवान से यह कहते सुना है। उससे पूछा जाय तो वह आपसे भी साफ-साफ कह देगा, या आप अपने भाई साहब से खुद पूछ सकते हाँ।

ज्ञानशंकर निरुत्तर हो गये। उस समय पैरगाड़ी सँभाली, झल्लाये हुए घर आये और श्रद्धा से तीव्र स्वर में बोले, भाभी, तुमने देखी भैया की करामात। आज पता चला कि आपने लखनपुरवालों को अपील की पैरवी करने के लिए एक हजार दिये हैं। इसका फल यह हुआ कि मेरी अपील खारिज हो गयी, महीनों की दौड़-धूप और हजारों रुपयों पर पानी फिर गया। एक हजार सालाना का नुकसान हुआ और रोबदाब बिल्कुल मिट्टी में मिल गया। मुझे उनसे ऐसी कूटनीति की आशंका न थी। अब तुम्हीं बताओं उन्हें दोस्त समझूँ या दुश्मन?

श्रद्धा ने संशयात्मक भाव से कहा, तुम्हें किसी ने बहका दिया होगा। भला उनके पास इतने रुपये कहाँ होंगे?

ज्ञान---नहीं, मुझे पक्की खबर मिली है। जिन लोगों ने रुपये पाये है है खुद अपनी जवान से कहते हैं।

श्रद्धा-तुमसे तो उन्होंने वादा किया था कि लखनपुर से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है, मैं वहाँ कभी न जाऊँगा।

ज्ञान–हाँ, कहा तो था और मैंने उन पर विश्वास कर लिया था, लेकिन आज विदित हुआ कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सारे संसार के मित्र होते है, पर अपने घर के शत्रु। जरूर इसमें चचा साहब का भी हाथ है।

श्रद्धा-पहले उनसे पूछ तो लो। मुझे विश्वास नहीं आता कि उनके पास