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प्रेमाश्रम

गौस खाँ ने कटू स्वर से कहा, वह कहाँ हैं मनोहर, क्या उसे आते शरम आती थी?

बिलसी ने दीनता पूर्वक कहा, सरकार उनकी बातों का कुछ ख्याल न करे। आपकी गुलामी करने को मैं तैयार हैं।

कादिर- यूँ तो गऊ हैं, किंतु आज न जाने उसके सिर कैसे भूत सवार हो गया। क्यों मुक्खू महतो, आज तक गाँव में किसी से लड़ाई हुई है?

मुक्खू ने बगले झाँकते हुए कहा, नहीं भाई, कोई झूठ थोड़े ही कह देगा।

कादिर--अब बैठा रो रहा है। किंतना समझाया कि चल के खाँ साहब से कसूर माफ करा ले, लेकिन शरम से आता नहीं है।

गौस खाँ- शर्म नहीं, शरारत है। उसके सिर पर जो भूत चढ़ा हुआ हैं उसका उतार मेरे पास है। उसे गरूर हो गया है।

कादिर--अरे खाँ साहब, बेचारा मजूर गरूर किस बात पर करेगा? मूरख उजड्ड आदमी है, बात करने का सहूर नहीं है।

गौस खाँ–तुम्हें वकालत करने की जरूरत नहीं। मैं अपना काम खूब जानता हैं। इस तरह दबने लगा तब तो मुझसे कारिंदागिरी हो चुकी। आज एक ने तेवर बदले हैं, कल उसके दूसरे भाई और हो जायेंगे। फिर जमीदार को कौन पूछता है। अगर पलटने से किसी ने ऐसी शरारत की होती तो उसे गोली मार दी जाती। जमीदार से आँखे बदलना साला जी का घर नहीं हैं।

यह कह कर गौस ख़ाँ टाँगन पर सवार होने चले। बिलासी रोती हुई उनके सामने हाथ बाँध कर खड़ी हो गयी और बोली, सरकार कही की न रहूँगी। जो डाँड चाहे लगा दीजिए, जो सजा चाहे दीजिए, मालिकों के कान में यह बात न डालिए। लेकिन खाँ साहब ने सुक्खू महतो को हत्थे पर चढ़ा लिया था। वह सूखी करुणा को अपनी कपट चाल में बाधक बनाना नहीं चाहते थे। तुरंत घोड़े पर सवार हो गये और सुंक्खू को आगे-आगे चलने का हुक्म दिया। काबिर मियाँ ने धीरे से गिरधर महाराज के कान में कहा, क्या महाराज, बेचारे मनोहर का सत्यानाश करके ही दम लोगे?

गिरधर ने गौरव-युक्त भाव से कहा, जब तुम हमसे आँखे दिखलाओगे तो हम भी अपनी-सी करके रहेगे। हमसे कोई एक अगुल दबे तो हम उससे हाथ भर दबने को तैयार हैं। हमसे जी भर लगा हम उससे गज भर तन जायेगे।

कादिर—यह तो सुपद ही है, तुम हुक से दबने लगोगे तो तुम्हें कौन पूछेगा? मुदा अब मनोहर के लिए कोई राह निकालो। उसका सुभाव तो जानते हो। गुस्सैल आदमी है, पहले बिगड़ जाता है, फिर बैठ कर रोता है। बेचारा मिट्टी में मिल जायगा।

गिरधर-भाई, अब तो तीर हमारे हाथ से निकल गया।

कादिर--मनोहर की हत्या तुम्हारे ऊपर ही पड़ेगी।

गिरधर एक उपाय मेरी समझ में आता है। जा कर मनोहर से कह दो कि मालिक के पास जा कर हाथ-पैर पड़े। वहाँ मैं भी कुछ कह-सुन दूंगा। तुम लोगों के साथ नेकी करने को जी तो नहीं चाहता, कम पड़ने पर घिघिआते हो, काम निकल