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प्रेमाश्रम

ज्ञानशकर बुलाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें यहाँ का ठाट-बाट देख कर विस्मय हो रहा था। द्वार पर दो दरबान वरदी पहने टहल रहे थे। सामने की अँगनाई में एक घण्टा लटका हुआ था। एक ओर अस्तवल मे कई बडी रास के घोडे बँधे हुए थे। दूसरी ओर एक टीन के झोपडे मे दो हवागाडियाँ थी। दालान मे पिंजडे लटकते थे, किसी में मैना थी, किसी मे पहाड़ी श्यामा, किसी में सफेद तोता। विलायती खरहे अलग कटघरे में पले हुए थे। भवन के सम्मुख ही एक बॅगला था, जो फर्श और मैज-कुर्सियो से सजा हुआ था। यही दफ्तर था। यद्यपि अभी बहुत सवेरा था, पर कर्मचारी लोग अपने-अपने काम में लगे हुए थे। वह दीवानखाना था। उसकी सजावट बडे सलीके के साथ की गयी थी। ऐसी बहुमूल्य कालीनें और ऐसे बडे-बडे आइने उनकी निगाह से न गुजरे थे।

कई दलानो और आँगनों से गुजरने के बाद जब वह गायत्री की बैठक में पहुंँचे तब उन्हें अपने सम्मुख विलासमय सौन्दर्य की एक अनुपम मूर्ति नजर आयी जिसके एक-एक अग से गर्व और गौरव आभासित हो रहा था। यह वह पहले की-सी प्रसन्नमुख सरल प्रकृति विनय पूर्ण गायत्री न थी।

ज्ञानशकर ने सिर झुकाये सलाम किया और कुर्सी पर बैठ गये। लज्जा मे सिर उठाने दिया। गायत्री ने कहा, आइए महाशय, आइए! क्या विद्या छोड़ती ही न थी? और तो सब कुशल है।

ज्ञान--जी हाँ, सब लोग अच्छी तरह हैं। माया तो चलते समय बहुत जिद कर रहा था कि मैं भी मौसी के घर चलूँगा, लेकिन अभी बुखार से उठे हुए थोड़े ही दिन हुए हैं, इसी कारण साथ न लाया। आपको नित्य याद करता है।

गायत्री--मुझे भी उसकी प्यारी-प्यारी भोली सूरत याद आती है। कई बार इच्छा हुई कि चलूँ, सबसे मिल आऊँ, पर रियासत के झमेले से फुरसत ही नहीं मिलती। यह बोझ आप सँभालें तो मुझे जरा साँस लेने का अवकाश मिले। आपके लेख का तो बडा आदर हुआ। (मुस्करा कर) खुशामद करना कोई आप से सीख ले।

ज्ञान--जो कुछ था वह मेरी श्रद्धा का अल्पाश था।

गायत्री ने गुणज्ञता के भाव से मुस्करा कर कहा--जब थोड़ा-सा पाप वदनाम करने को पर्याप्त हो तो अधिक क्यों किया जाय? कार्तिक मे हिज एक्सेलेन्सी यहाँ आने वाले है। उस अवसर पर मेरे उपाधि-प्रदान का जल्सा करना निश्चय किया है। अभी तक केवल गजट में सूचना छपी है। अब दरवार में मैं यथोचित समारोह और सम्मान के साथ उपाबि से विभूषित की जाऊँगी।

ज्ञान--तब तो अभी से दरवार की तैयारी होनी चाहिए।

गायत्री--आप बहुत अच्छे अवसर पर आये। मडप में अभी से हाथ लगा देना चाहिए। मेहमानों का ऐसा सत्कार किया जाय कि चारो ओर घूम मच जाय। रुपये की जरा भी चिन्ता मत कीजिए। आप ही इस अभिनय के सूत्रधार है, आपके ही हाथो इसका सूत्रपात होना चाहिए। एक दिन मैंने जिलाधीश से आप का जिक्र किया था।