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प्रेमाश्रम

पूछने लगे, उनके राजनीतिक विचार कैसे हैं। मैने कहा, बहुत ही विचारशील, शान्त प्रकृति के मनुप्य हैं। वह सुन कर बहुत खुश हुए और कहा, वह आ जायें तो एक बार जल्से के सम्बन्ध में मुझसे मिल ले।

इसके बाद गायत्री ने इलाके की सुव्यवस्था और अपने संकल्पो की चर्चा शुरू की। ज्ञानशकर को उसके अनुभव और योग्यता पर आश्चर्य हो रहा था। उन्हें भय होता कि कदाचित् मैं इन कार्यों को उत्तम रीति से सम्पादन न कर सकूँ। उन्हें देहाती बैक का विलकुल ज्ञान न था। निर्माण कार्य से परिचित न थे, कृषि के नये आविष्कारो से कोरे थे, किन्तु इस समय अपनी योग्यता प्रकट करना नितान्त अनुचित था। वह गायत्री की बातो पर ऐसी मर्मज्ञता से सिर हिलाते थे और बीच-बीच मे टिप्पणियाँ करते थे, मानो इन विषयों में पारंगत हो। उन्हें अपनी बुद्धिमत्ता और चातुर्य पर भरोसा था। इसके बल पर वह कोई काम हाथ में लेते हुए न हिचकते थे।

ज्ञानशंकर को दो-चार दिन भी शान्ति से बैठ कर काम को समझने का अवसर न मिला। दूसरे ही दिन से दरवार की तैयारियों में दत्तचित्त होना पड़ा । प्रात.काल से सन्ध्या तक सिर उठाने की फुरसत न मिलती। बार-बार अधिकारियों से राय लेनी पड़ती, सजावट की वस्तुओं को एकत्र करने के लिए बार-बार रईसो की सेवा में दौड़ना पड़ता। ऐसा जान पड़ता था कि यह कोई सरकारी दरबार है। लेकिन कर्तव्यशील उत्साही पुरूष थे। काम से घबराते न थे। प्रत्येक काम को पूरी जिम्मेदारी से करते थे। वह संकोच और अविश्वास जो पहले किसी मामले में अग्रसर न होने देता था अब दूर होता जाता था। उनकी अध्यबसाय शीलता पर लोग चकित हो जाते थे। दो महीनो के अविश्रान्त उद्योग के बाद दरवार का इन्तजाम पूरा हो गया। जिलाधीश ने स्वयं आ कर देखा और ज्ञानशंकर की तत्परता और कार्यदक्षता की खूब प्रशंसा की। गायत्री से मिले तो ऐसे सुयोग्य मैनेजर की नियुक्ति पर उसे बधाई दी। अभिनन्दन पत्र की २चना का भार भी ज्ञानशंकर पर ही था। साहब बहादुर ने उसे पढ़ा तो लोट पोट हो गये और नगर के मान्य जनो से कहा, मैंने किसी हिन्दुस्तानी की कलम में यह चमत्कार नही देखा।

अक्टूबर मास की १५ तारीख दरवार के लिए नियत थी। लोग सारी रात जागते रहे है। प्रात.काल से सलामी की तोपें दगने लगीं, अगर उस दिन की कार्यवाही का संक्षिप्त वर्णन किया जाय तो एक गंथ बन जाय। ऐसे अवसरों पर उपन्यासकार अपनी कल्पना को समाचार पत्रों के सम्बाददाताओं के सुपुर्द कर देता है। लेडियो के भूषणालकारो की वहार, रईसो की सजधज की छटा देखनी हो, दावत की चटपटी, स्वाद युक्त सामग्रियों का मजा चखना हो और शिकार के तड़प-झड़प का आनन्द उठाना हो तो अखबारों को पन्ना उलटिए। वहाँ आपको सारा विवरण अत्यन्त सजीव, चित्रमय शब्दों में मिलेगा। प्रेसिडेन्ट रूजवेल्ट शिकार खेलने अफ्रिका गये थे तो सम्वाददाताओं की एक मण्डली उनके साथ गयी थी। सन्नाट जार्ज पंचम जब भारतवर्ष आये थे तब सम्वाददाताओं की पूरी सेना उनके जुलूस में थी। यह दरबार इतना महत्त्वपूर्ण न था,