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प्रेमाश्रम

गायत्री--मैं यह तर्क-वितर्क एक भी न सुनूँगी। आप स्वयं कुछ नहीं कहते इसलिए आपकी ओर से मैं ही कहे देती हूँ। आप अपने लिए बनारस में अपने घर से मिला हुआ एक सुन्दर बँगला बनवा लीजिए। चार कमरे हो और चारो तरफ बरामदे । बरामद पर विलायती खपरैल हो और कमरो पर लदाव की छत। छत पर बरसात के लिए एक हवादार कमरा बना लीजिए। खुश हुए?

ज्ञानशकर ने कृतज्ञतापूर्ण भाव से देख कर कहा, खुश तो नही हैं अपने ऊपर ईर्षा होती है।

गायत्री—-बस, दीपमालिका से आरम्भ कर दीजिए। अब बतलाइए, माया को क्या दूँ?

ज्ञान--माया को अभी कुछ न चाहिए। उसका इनाम अपने पास अमानत रहने दीजिए।

गायत्री--आप नौ नकद न तेरह उघारवाली मसल भूल जाते हैं।

ज्ञान--अमानत पर तो कुछ न कुछ ब्याज मिलता है।

गायत्री--अच्छी बात है; पर इस समय उसके लिए कलकत्ते के किसी कारखाने से एक छोटा-सा टडम मॅगा दीजिए और मेरा टाघँन जो ताँगे मे चलता है, बनारस भेज दीजिए। छोटी लडकी के लिए हार बनवा दीजिए जो ५०० रू से कम का न हो।

ज्ञानशकर यहाँ से चले तो पैर धरती पर न पडते थे। बँगले की अभिलाषा उन्हें चिरकाल से थी। वह समझते थे, यह मेरे जीवन का मधुर स्वप्न ही रहेगी, लेकिन सौभाग्य की एक ही दृष्टि ने वह चिरसचित अभिलाषा पूर्ण कर दी।

आरम्भ उत्साह वर्द्धक हुआ, देखें अन्त क्या होता है?



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आय में वृद्धि और व्यय में कमी, यह ज्ञानशकर के सुप्रबन्ध का फल था। यद्यपि गायत्री भी सदैव किफायत पर निगाह रखती थी, पर उनकी किफायत अशर्फियों की लूट और कोयलो पर मोहर को चरितार्थ करती थी। ज्ञानशकर ने सारी व्यवस्था ही पलट दी। कारिन्दो की बेपरवाही से इलाके में जमीन के बड़े-बड़े टुकडे परती पड़े थे। हजारो बीघे की सीर होती थी पर अनाज का कही पता न चलता था, सब को सब सिपाही, प्यादो की खुराक में उठ जाता था। पटवारी की साजिश और कारिन्दी की बेईमानी से कितनी ही उर्वरा भूमि ऊसर दिखायी जाती थी। सीर की सारी आमदनी राज्याधिकारियो के आदर-सत्कार के लिए भेंट हो जाती थी। नौकर भी जरूरत से ज्यादा पड़े हुए थे। ज्ञानशंकर ने कागज-पत्र देखा तो उन्हें बडा गोल-माल दिखायी दिया। बहुत दिनो से इजाफा लगान न हुआ था। खेतों की जमाबदी भी किसी निश्चित नियम के अधीन न थी। हजारो रुपये प्रति वर्ष बट्टा खाते चले जाते थे। बडे-बडे टुकचे मौरूसी हो गये थे। ज्ञानशकर ने इन सभी मामलो की छानबीन शुरू की। सारे इलाके मे हलचल मच गयी। गायत्री के पास शिकायते पहुँचने लगी और यद्यपि गायत्री असामियो