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प्रेमाश्रम

तो रियासत का वाँट वखरा हो जायगा और वसीयत पानी की रेखा की भाँति मिट जायगी। मैं चाहती हूँ कि आप इस समस्या को हल कर दें, इससे अच्छा अवसर फिर न मिलेगा।

ज्ञानशकर की आँखों के सामने अँधेरा छा गया। उनकी अभिलाषाओं के त्रिभुज का आधार ही लुप्त हुआ जाता था। बोले, वसीयत लेख-बद्ध हो गयी है?

गायत्री--उनकी इच्छा मेरे लिए हजारो लेखो से अधिक मान्य है। यदि उन्हें मेरी फिक्र न होती तो अपने जीवनकाल में ही रियासत को धर्मार्पण कर जाते। केवल मान रखने के लिए उन्होंने इस विचार को स्थगित कर दिया। जब उन्हें मेरा इतना लिहाज था तो मैं भी उनकी इच्छा को देववाणी समझती हूँ।

ज्ञानशकर समझ गये कि इस समय कूटनीति से काम लेने की आवश्यकता है। अनुमोदन से विरोध का काम लेना चाहिए। बोले, अवश्य, लेकिन पहले यह निश्चय कर लेना चाहिए कि इस परमार्थ का स्वरूप क्या होगा?

गायत्री--आप इस सम्बन्ध में लखनऊ जा कर पिता जी से मिलिए। अपने बड़े भाई साहब से राय लीजिए।

प्रेमशकर की चर्चा सुनते ही ज्ञानशकर के तेवरो पर बल पड़ गये। उनकी ओर से इनके हृदय में गाँठ-सी पड गयी थी। बोले, राय साहब से सम्मति लेनी तो आवश्यक है, वह बुद्धिमान् है, लेकिन भाई साहब को मैं कदापि इस योग्य नही समझता। जो मनुष्य इतना विचारहीन हो कि अपनी स्त्री को त्याग दे, मिथ्या सिद्धान्त-प्रेम के घमण्ड में विरादरी का अपमान करे और अपनी असाघुता को प्रजा-भक्ति का रंग दे कर भाई की गरदन पर छुरी चलाने में संकोच न करे, उससे इस धार्मिक विषय में कुछ पूछना व्यर्थ है। उनकी बदौलत मेरी एक हजार सालाना की हानि हो गयी और तीन साल गुजर जाने पर भी गाँव मे शान्ति नही होने पायी, बल्कि उपद्रव बढता ही चली जाता है। श्रद्धा इन्ही अविचारों के कारण उनसे घृणा करती है।

गायत्र--मेरी समझ में तो यह श्रद्धा का अन्याय है। जिस पुरुष के साथ विवाह हो गया, उसके साथ निर्वाह करना प्रत्येक कर्मनिष्ठ नारी का धर्म है।

ज्ञान--चाहे पुरुष नास्तिक और विधर्मी हो जाय?

गायत्री--हाँ, मैं तो ऐसा ही समझती हूँ। विवाह स्त्री-पुरुष के अस्तित्व को संयुक्त कर देता है। उनकी आत्माएँ एक दूसरे में समाविष्ट हो जाती हैं।

ज्ञान--पुराने जमाने में लोगो के विचार ऐसे रहे हो, पर नया युग इसे नही मानता। वह स्त्री को सम्पूर्णतः स्वाधीन ठहराता है। वइ मनसा, वाचा, कर्मणा किसी के अधीन नही है। परमात्मा से आत्मा का जो घनिष्ठ सम्बन्ध हैं उसके सामने मानवकृत सम्बन्ध की कोई हस्ती नहीं हो सकती। पश्चिम के देशों में आये दिन धार्मिक मतभेद के कारण तलाक होते रहते है।

गायत्री--उन देशों की बात न चलाइए, वहाँ के लोग तो विवाह को केवल सामाजिक सम्बन्ध समझते है। आपने ही एक बार कहा था कि वहाँ कुछ ऐसे लोग