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प्रेमाश्रम

की नींव पड़ गयी। गौस ख़ाँ के भी सैकड़ों रुपये खर्च हो गये। ये काँटे उन्होंने ज्ञानशंकर से बिना पूछे ही बोये थे। इसलिए इसका फल भी इन्हीं को खाना पड़ा। हम का धन हराम की भेंट हो गया।

गौस खाँ यह चोट खा कर बौखला उठें। सुक्खू चौधरी उनकी आँखों में काटे की तरह खटकने लगा। दयाशंकर इस हल्के से बदल गये थे। उनकी जगह पर नूर आलम नाम के एक दूसरे महाशय नियुक्त हुए थे। गौस खाँ ने इनसे राह-रस्म पैदा करना शुरू किया। दोनों आदमियों में मित्रता हो गयी और लखनपुर पर नयी-नयी विपत्तियों को आक्रमण होने लगा।

बर्फी के दिन थे। किसानों को ज्वार और बाजरे की रखवाली से दम मारने का अवकाश न मिलता। जिधर देखिए हा-हू की ध्वनि आती थी। कोई ढोल बजाता था, कोई टीन के पीपे पीटता था। दिन को तोतों के झुंड-के-झुंड टूटते थे, रात को गीदड़ के गोल; उस पर धान की क्यारियों में पौधे बिठाने पड़ते थे। पहर रात रहे ताल में आते और पहर रात गये आते थे। मच्छरों के डंक से लोगों को देह में छाले पड़ जाते थे। किसी का घर गिरता था, किसी के खेत में मेड़े कटी जाती थी। जीवन-संग्राम की दोहाई मची हुई थीं। इसी समय दारोगा नूर आलम के गाँव पर छापा मारा। सुक्खू चौधरी ने कभी कोकीन को सेवन नहीं किया था, उसकी सूरत नहीं देखी थी, उनका नाम नहीं सुना था, लेकिन उनके घर में एक तोला कोकीन बरामद हुई। फिर क्या था, मुकदमा तैयार हो गया। माल के निकलने की देर थी, हिरासत में आ गये। उन्हें विश्वास हो गया कि मैं बरी न हो सकूँगा। उन्होंने स्वयं कई आदमियों को इसी भाँति सजा दिलायी थी। हिरासत में आने के एक क्षण पहले वह घर से गये और एक हाँड़ी लिए हुए आये। गाँव के सब आदमी जमा थे। उनसे बोले, भाइयों, रामराम! अब तुमसे विदा होता हैं। कौन जाने फिर भेंट हो या न हो। बूढ़े आदमी की जिन्दगानी का क्या भरोसा। ऐसे ही भाग होगे तो भेंट होगी। इस हाँडी में पाँच हजार रुपये हैं। यह कादिर भाई को पता हैं। तालाब का घाट बनवा देना। जिन लोगों पर मेरा जो कुछ आता है वह सब छोड़ता हूँ। यह देखो, सब कागज-पत्र अब तुम्हारे सामने फाड़े डालता हूँ। मेरा किसी के यहाँ कुछ बाकी नहीं, सब भर पाया।

दारोगा जी वहीं उपस्थित थे। रुपयों की हांडी देखते ही लार टपक पड़ी। सुक्खू का बुला कर कान में कहा, कैसे अहमक हो कि इनने रुपये रख कर भी बचने की फिक्र नहीं करते?

सुक्कू अब बच कर क्या करना है! क्या कोई रोनेवाला बैठा है?

नूर आलम-तुम इस गुमान में होगे कि हाकिम को तुम्हारे बुढ़ापे पर तरस आ जायगा और वह तुमको बरी कर देगा। मगर इस धोखे में न रहना। वह डट कर रिपोर्ट लिखूँगा और ऐसी मोतविर शहादत पेश करूँगा कि कोई वैरिस्टर भी जबान न खोल सकेगा। पाँच हजार नहीं पाँच लाख भी खर्च करोगे तो भी मेरे पंजे से न