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प्रेमाश्रम

निकल सकोगे। मैं दयाशंकर नही हूँ, मेरा नाम नूर आलम है। चाहूँ तो एक बार खुदा को भी फंसा दूँ।

सुक्खू ने फिर उदासीन भाव से कहा, आप जो चाहे करे। अब जिन्दगी मे कौन सा सुख है कि किसी का ठेगा सिर पर लूँ? गौस खाँ का दया-स्रोत उबल पड़ा। फैजू और कर्तार भी बुलबुला उठे और बिन्दा महाराज तो हाँडी की ओर टकटकी लगाये ताक रहे थे।

सबने अलग-अलग और फिर मिल कर सुक्खू को समझाया; लेकिन वह टस से मस न हुए। अन्त में लोगों ने कादिर को घेरा। नूर आलम ने उन्हें अलग ले जा कर कहा, खाँ साहब, इस बूढे को जरा समझाओ, क्यों जान देने पर तुला हुआ है। दो साल से कम की सजा न होगी। अभी मामा मेरे हाथ में है। सब कुछ हो सकती। है। हाथ से निकल गया तो कुछ न होगा। मुझे उसके बुढ़ापे पर तरस आता है।

गौस खाँ बोले-हो, इस वक्त उस पर रहम करना चाहिए। अब की ताऊन ने बेचारे का सत्यानाश कर दिया।

कादिर खाँ जा कर सुक्खू को समझाने लगे। बदनामी का भय दिखाया, कारावास की कठिनाइयों बयान की, किन्तु सुक्खू जरा भी न पसीजा। जब कादिर खाँ ने बहुत आग्रह किया और गाँव के सब लोग एक स्वर से समझाने लगे तो सुक्खू उदासीन भाव से बोला, तुम लोग मुझे क्या समझाते हो? मैं कोई नादान बालक नहीं हूँ। कादिर खाँ से मेरी उम्र दो ही चार दिन कम होगी। इतनी बड़ी जिन्दगानी अपने बन्धुओं का बुरा करने में कट गयी। मेरे दादा मरे तो घर में भूनी भाँग तक न थी। कारिन्दो से मिल कर मैं आज गाँव का मुखिया बन बैठा हूँ। चार आदमी मुझे जानते है और मेरा आदर करते हैं, पर अब आँखों के सामने से परदा हट गया। उन कर्मों का फल कौन भोगेगा? भोगना तो मुझी को है, चाहे यही भोगूँ, चाहे नरक में। यह सारी हाँडी मेरे पापों से भरी हुई है। इसी ने मेरे कुल का सर्वनाश कर दिया। कोई एक चुल्लू पानी देनेवाला न रहा। यह पाप की कमाई पुण्य कार्य में लग जाय तो अच्छा है। घाट बनवा देना, अगर कुछ और लगे तो अपने पास से लगा देना। मैं जीती बचा तो कौडी-कौड़ी चुका दूंगा।

दूसरे दिन सुक्खू का चालान हुआ। फैजू और कर्तार ने पुलिस की ओर से साक्षी दी। माल बरामद हो ही गया था। कई हजार रुपयों का घर से निकलना पुष्टिकारक प्रमाण हो गया। कोई वकील भी न था। पूरे दो साल की सजा हो गयी। निरपराध निर्दोष सुक्खू गौस खाँ के वैमनस्य और ईर्ष्या का लक्ष्य बन गया।

सारा गाँव थर्रा उठा। इजाफा लगान के खारिज होने से लोगों ने समझा था कि अब किसी बात की चिंता नही, मानों ईश्वर ने अभय प्रदान कर दिया। पर अत्याचार के यह नये हथकडे देख कर सबके प्राण सूख गये। जब सुक्खू चौधरी जैसा शक्तिशाली मनुष्य दम के दम मे तबाह हो गया तो दूसरों का कहना ही क्या? किन्तु गौस खाँ को अब भी सन्तोष न हुआ। उनकी यह लालसा कि सारा गाँव मेरा गुलाम

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