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प्रेमाश्रम

हो जाय, मेरे इशारे पर नाचे, अभी तक पूरी न हुई थी। मौरूसी काश्तकारों में अभी तक कई आदमी बचे हुए थे। कादिर खाँ अब भी था, बलराज और मनोहर अब भी आँखो मे खटकते थे। यह सब इस बाग के काँटे थे। उन्हें निकाले बिना सैर करने का आनन्द कहाँ ?

लखनपुर शहर से दस ही मील की दूरी पर था। हाकिम लोग आते और जाते यहाँ जरूर ठहरते। अगहन का महीना लगा ही था कि पुलिस के एक बड़े अफसर का लश्कर आ पहुँचा। तहसीलदार स्वयं रसद का प्रबन्ध करने के लिए आय। चपरासियो की एक फौज साथ थी। लश्कर में सौ सवा-सौ आदमी थे। गाँव के लोगो ने यह जमघट देखा तो समझा कि कुशल नही है। मनोहर ने बलराज को ससुराल भेज दिया और ससुरालवालो को कहला भेजा कि इसे चार-पाँच दिन न आने देना। लोग अपनी-अपनी लकडियाँ और भूसा उठा-उठा कर घरों में रखने लगे। लेकिन बोवनी के दिन थे, इतनी फुरसत किसे थी ?

प्रात काल बिसेसर साह दूकान खोल ही रहे थे कि अरदली के दस-बारह चपरासी दुकान पर आ पहुँचे। बिसेसर ने आटे दाल के बोरे खोल दिये; जिन्सें तोली जाने लगी। दोपहर तक यही ताँता लगा रहा। घी के कनस्तर खाली हो गये। तीन पडाव के लिए जो सामग्री एकत्र की थी, अभी समाप्त हो गयी। बिसेसर के होश उड गये। फिर आदमी मडी दौड़ाये । वेगार की समस्या इससे कठिन थी। पाँच बडे-बडे घोडो के लिए हरी घासे छीलना सहज नही था। गाँव के सब चमार इस काम में लगा दिये गये। कई नोनिये पानी भर रहे थे। चार आदमी नित्य सरकारी डाक लेने के लिए सदर दौड़ाये जाते थे। कहारो को कर्मचारियो की खिदमत से सिर उठाने की फुरसत न थी। इसलिए जब दो बजे साहब ने हुक्म दिया कि मैदान में घास छील कर टेनिस कोर्ट तैयार किया जाय तो वे लोग भी पकड़े गये जो अब तक अपनी वृद्धावस्था या जाति-सम्मान के कारण बचे हुए थे। चपरासियो ने पहले दुखरन भगत को पकड़ा। भगत ने चौक कर कहा, क्यो मुझसे क्या काम है? चपरासी ने कहा, चलो लश्कर में घास छीलनी है।

भगत--घास चमार छीलते हैं, यह हमारा काम नहीं है।

इस पर एक चपरासी ने उनकी गरदन पकड़ कर आगे ढकेंला और कहा, चलते हो या यहाँ कानून बघारते हो ?

भगत--अरे तो ऐसा क्या अन्धेर है? अभी ठाकुर जी को भोग तक नहीं लगाया।

चपरासी--एक दिन में ठाकुर जी भूखो न मर जायेंगे ।

भगत ने वाद विवाद करना उचित न समझा, झपट कर सिपाहियों के बीच से निकल गये और भीतर जा कर विवाद बन्द कर दिये। सिपाहियों ने धडाधड किवाड पीटना शुरू किया । एक सिपाही ने कहा, लगा दें आग, वहीं भुन जाय। दुखरन ने भीतर से कहा, बैठो, भोग लगा कर आ रहा हूँ। चपरासियो ने खपरैल फोडने शुरू किये। इतने में कई चपरासी कादिर खाँ आदि को साथ लिए आ पहुँचे। डपटसिंह