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प्रेमाश्रम

पहला अंक

राजा—हाय! हाय! वैद्यो ने जवाब दिया, हकीमों ने जवाब दिया, डाकटरो ने जबाब दिया, किसी ने रोग को न पहचाना । सब के सब लुटेरे थे। अब जिन्दगानी की कोई आशा नहीं। यह सारा राज-पाट छूटता है। मेरे पीछे प्रजा पर न जाने क्या बीतेगी! राजकुमार अल्हड नादान है, उसकी संगत अच्छी नहीं है। (प्रेमशंकर की ओर कटाक्ष से देख कर) किसानो से मेल रखता है। उसके पीछे सरकारी आदमियो से रार करता है। जिन दीन-दुखी रोगियों की परछाई से भी डाकटर लोग डरते हैं। उनकी दवा-दारू करता है। उसे अपनी जान का, धन का तनिक भी लोभ नहीं है। यह इतना बड़ा राज कैसे सँभालेगा? अत्याचारियो को कैसे दंड देगा? हाय, मेरी प्यारी रानी, जिससे मैंने अभी महीने भर हुए ब्याह किया है, मैरे बिना कैसे जियेगी? कौन उससे प्रेम करेगा? हाय!

रानी—स्वामी जी, मैं सोक में मर जाऊँगी। यह उजले सन के-से बाल, यह पोपला मुँह कहाँ देखूँगी (कटाक्ष भाव से) किसको गोद में लूँगी? किससे ठुनकूँगी? अब मैं किसी तरह न बचूँगी।

राजा की साँस उखड़ जाती है, आँखे पथरा जाती हैं, नाडी छूट जाती है। रानी छाती पीट कर रोने लगती है। दरबार मै हाहाकार मच जाता है।

राजा के कानो में आकाशवाणी हौती हैं—हम तुझे एक घंटे की मोहलत देते हैं, अगर तुझे तीन मनुष्य ऐसे मिल जायें जो दिल से तेरे जीने की इच्छा रखते हो तो तू अमर हो जायेगा।

राजा सचेत हो जाता है, उसके मुखारविन्द पर जीवन-ज्योति झलकने लगती है। वह प्रसन्नमुख उठ बैठता है और आप ही आप कहता है, अब मैं अमर हो गया, अकटक राज्य करूंगा, शत्रुओं का नाश कर दूंगा। मैरे राज्य में ऐसा कौन प्राणी है जो हृदय से मेरे जीने की इच्छा न रखता हो। तीन नहीं, तीन लाख आदमी बात-बात मै निकल आयेंगे।

दूसरा अंक

(राजा एक साधारण नागरिक के रूप में आप ही आप)

समय कम है, ऐसे तीन सज्जनो के पास चलना चाहिए जो मेरे भक्त थे। पहले सेठ के पास चलूँ। वह परोपकार के प्रत्येक काम में मेरी सहायता करता था। मैंने उसकी कितनी बार रक्षा की है और उसे कितना लाभ पहुँचाया है। यह सेठ जी का घर आ गया। सैठ जी, सैठ जी! जरा बाहर आओ।

सेठ—क्या है? इतनी रात गये कौन काम है?

राजा—कुछ नही, अपने स्वर्गवासी राजा का यश गा कर उनकी आत्मा को शाति देना चाहता हूँ। कैसे धर्मात्मा, प्रजा-प्रिय पुरुष थे! उनका परलोक हो जाने से सारे