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प्रेमाश्रम


सवेरे प्रेमशंकर टहलते हुए पड़ाव की और चले तो देखा कि लश्कर कूच की तैयारी कर रहा है। खेमे उखड़ रहे है। गाड़ियों पर असबाब लद रहा है। साहब बहादुर की मोटर तैयार है और बिसेसर साह तहसीलदार के सामने कागज का एक पुलिन्दा लिए खड़े है। तेली, तमोली, बूचड़ आदि भी एक पेड़ के नीचे अभियुक्तों की भाँति दाम वसूल करने के लिए बैठे हुए है। प्रेमशंकर ने तहसीलदार से हाथ मिलाया और बैठ कर तमाशा देखने लगे।

तहसीलदार—कहाँ हैं गाड़ीवान लोग? बुलाओ, रसद का हिसाब करें। इस पर एक गाड़ीवान ने कहा, हजूर यहाँ रसद मिली है कि हमारी जान मारी गयी है। आटे में इस बेइमान बनिए ने न जाने क्या मिला दिया है कि उसी दिन से पेट में दर्द हो रहा है। घी में तेल मिलाया था, उस पर हिसाब करने को कहता है। अभी साहब से कह दें तो बच्चू को लेने के देने पड जायें।

अर्दली के कई चपरासी बोले, यह बनिया गोली मार देने के लायक है। ऐसा खराब आटा उम्र भर नहीं खाया। न जाने क्या चीज मिला की है कि हजम ही नहीं होता। घी ऐसा बदबू करता था कि दाल खाते न बनती थी। इसपर तो जुर्माना होना चाहिए। उल्टे हिसाब करने को कहता है।

एक कानस्टेबिल महाशय ने कहा, हम इसे खूब जानते हैं, छटा हुआ है। चीनी दी तो उसमे आधी बालू, घी में आधी चुइयाँ, आटे में आधा चोकर, दाल में आधा कूड़ा। इसे तो ऐसी जगह मारे जहाँ पानी न मिले।

कई साईस बोले, घोड़ो को जो दाना दिया है वह बिल्कुल घुना हुआ, आधा चना आधा चोकर। घोडौं ने सूंघा तक नहीं। साहब से कह दें तो अभी हंटर पड़ने लगे।

तहसीलदार ये सब शिकायते पहले क्यों नहीं की?

कई अदिमी-हुजूर, रोज तो हाय-हाय कर रहे है।

तहसीलदार-(प्रेमशंकर की ओर देख कर मुझसे किसी ने भी नहीं कहा। अब यह सब मैं कुछ नहीं सुनूंगा। जिसके जिम्मे जो कुछ निकले, कौड़ी-कोड़ी दे दो। साह जी, अपना हिसाब निकालो।

बिसेसर--मौला बख्या अर्दली, आटा ऽ३, घी ऽ, चावल ऽ२, दाल ऽ१, मसाला ऽ1, तमाखू ऽ1, कत्था-सुपारी ऽ३, चीनी कुछ ३ रुपये।

तहसीलदार कहाँ है मौला बख्श? दाम दे कर रसीद लो।

एक अर्दली-इस नाम का हमारे यहाँ कोई आदमी नहीं है।

बिसेसर है क्यों नही? लम्बे-लम्बे हैं, छोटी दाढी है, मुंह पर शीतला का दाग है, सामने के दो-तीन दाँत टूटे हैं।

कई अर्दली-इस हुलिए को यहाँ आदमी ही नहीं। पहचान हममें से कौन है?

बिसेसर-कहीं चल दिये होगें और क्या?

तहसीलदार—अच्छा दूसरा नाम बोलो।