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प्रेमाश्रम

मैं रामायण पढने लगता हूँ तो कैसे डाँट के कहते हैं, क्या शोर मचा रक्खा है। अब की असाढ मे ३०० रु० नजराना मिली, हमे एक पाई से भेट न हुई।

विन्दा–-हमका तो एक रुपया मिल रहे।

कर्तार--यह भी कोई मिलने में मिलना है। और सब कही चपरासियो को रुपये मे आठ आने मिलते है। यह कुछ न दें तो चार आने तो दे। लेना-देना दूर रहा उस पर आठो पहर सिर पर सवार। कल तुम कही गये थे। मुझसे बोले, कर्तार एक घडा पानी तो खीच लो। मैंने तुरत जवाब दिया, इसके नौकर नही है, फौजदारी करा लो, लाठी चलवा लो, अगर कदम पीछे हटाये तो कहो, लेकिन चिलम भरना, पानी खींचना हमारा काम नहीं है। इस पर आँखें बहुत लाल-पीली की । एक दिन पीपल के नीचे-वाली मुरतो को देख कर बोले, यह क्या ईंट-पाथर जमा कर रखे है। मैंने तो ठान लिया है कि जहाँ अब की कोई नजराना ले कर आया और मैंने हाथ पकड़ा कि चार आने इधर रखिए। जरी भी नरम गरम हुए, मुँह से लाम-काफ निकाली और मैंने गरदन दबायी। फिर जो कुछ होगा देखा जायगा। फैजू बोले तो उनसे भी मैं समझूँगा। सूब पड़े-पड़े रोटी, गोस उड़ा रहे हैं, सब निकाल दूँगा। वह देखो मवेशी इधर आ रहे हैं। बलराज तो नही है न?

बिन्दा--होवे करी तो कौनो डर हो ? अब की अस जर आवा है कि ठठरी होय गया है।

कर्तार--बड़े कस-बल का पट्ठा है। सुक्खू चौधरी का तालाब जहाँ बन रहा था वही एक दिन अखाड़े मे उससे मेरी एक पकड हो गयी थी। मैं उसे पहले ही झपाटे में नीचे लाया, लेकिन ऐसा तडप के नीचे से निकला कि झोको में आ गया। सँभक ही न सका। बदन नही, लोहा है।

बिन्दा--निगाह का बड़ा सच्चा जवान हैं। क्या मजाल कि कोऊ की बिटिया-महरिया की ओर आँखे उठा के ताके।

कर्तार--वह देखो फैजू और गौस खाँ भी इधर ही आ रहे हैं। आज कुशल नही दीखती ।

बिन्दा--यह गाये-भैसे तो मनोहर की जान परते है। बिलासी लीने आवत है।

कुर्तार ने उच्च स्वर में कहा, यह कौन मवेशी लिए आता है? यहाँ से निकाल ले जाव, सरकारी हुक्म नहीं है। इतने में बिलासी निकट आ गयी और बिन्दा महराज की और निश्चित भाव से देख कर बोली, सुनत हो महराज ठाकुर की बात!

कर्तार--सरकारी हुक्म हो गया कि अब कोई जानवर यहाँ न चरने पाये।

बिलासी--कैसा सरकारी हुकुम ? सरकार की जमीन नहीं है। महाराज, तुम्हे तो यहाँ एक युग बीत गया, कभी किसी ने चराई भी मना किया है ?

बिन्दा--उन पुरानी बातन का न गावो, अब से हुकुम भवा है। जानवर का और कौनो कैती ले जाव, नाही तो वह गौस खाँ आवत हैं, सभन का पकड़ के कानी हौद पठे दैहैं?