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प्रेमाश्रम


तो ऐसे अधिकार पर लात मारता हूँ। यहाँ तो अल्लाहताला भी आसमान से उतर आयें और अन्याय करने को कहे तो उनका हुक्म न मानें।

ज्वालासिंह समझ गये कि यह जले हुए दिल के फफोले है। बोले, अभी ऐसी दूर की ले रहे हो, कल को नामजद हो जाओ, तो यह बातें भूल जायें।

ज्ञानशंकर--हाँ, बहुत सम्भव है, क्योंकि मैं भी तो मनुष्य हैं, लेकिन संयोग से मेरे इस परीक्षा में पड़ने की कोई संम्भावना नहीं है और हो भी तो मैं आत्मा की रक्षा करना सर्वोपरि समझूँगा।

ज्वालासिंह गर्म होकर बोले, आपको यह अनुमान करने का क्या अधिकार है कि और लोग अपनी आत्मा का आपसे कम आदर करते है? मेरा विचार तो यह है कि संसार में रहकर मनुष्य आत्मा की जितनी रक्षा कर सकता है, उससे अधिकार उसे वंचित नहीं कर सकता। अगर आप समझते हो कि वकालत या डाक्टरी विशेष रूप से आत्म-रक्षा के अनुकूल है तो आपकी भूल है। मेरे चचा साहब वकील है, बड़े भाई साहब डाक्टरी करते हैं, पर वह लोग केवल धन कमाने की मशीनें है, मैंने उन्हें कभी असत्-सत् के झगड़े में पढ़ते हुए नहीं पाया?

ज्ञानशंकर--वह चाहे तो आत्मा की रक्षा कर सकते है।

ज्वालासिंह-बस, उतनी ही जितनी कि एक सरकारी नौकर कर सकता है। वकील को ही ले लीजिए, यदि विवेक की रक्षा करे तो रोटियाँ चाहे भले खाय, समृद्धिशाली नहीं हो सकता। अपने पेशे में उन्नति करने के लिए उसे अधिकारियों का कृपा-पात्र बनना परमावश्यक है और डाक्टरों का तो जीवन ही रईसो की कृपा पर निर्भर है, गरीबों से उन्हें क्या मिलेगा। द्वार पर सैकड़ो गरीब रोगी खड़े रहते हैं, लेकिन जहाँ किसी रईस का आदमी पहुँचा, वह उनको छोड़ कर फिटन पर सवार हो जाते है। इसे मैं आत्मा की स्वाधीनता नहीं कह सकता।

इतने में गौस खाँ, गिरधर महाराज और सुक्खू ने कमरे में प्रवेश किया। गौस तो-सलाम करके फर्श पर बैठ गयें, शेष दोनो आदमी खड़े रहे। लाली प्रभाकर बरामदे में बैठे हुए थे। पूछो, असामियों को घी के रुपये बाँट दिये।

गौस खाँ---जी हाँ, हुजूर के इकवाल से सब रुपये तकसीम हो गये, मगर इलाके में चंद आदमी ऐसे सरकश हो गये है कि खुदा की पनाह। अगर उनकी तबीह न की गयी तो एक दिन मेरी इज्जत में फर्क आ जायगा और क्या अजब है कि जान से भी हाथ घोऊँ।

ज्ञानशंकर--(विस्मित हो कर) देहात में भी यह हवा चली?

गौस खाँ ने रोनी सुरत बना कर कहा, हुजूर, कुछ न पूछिए, गिरधर महाराज भाग न खड़े हो तो इनके जान की खैरियत नहीं थी।

ज्ञान−उन आदमियों को पकड़ के पिटवाया क्यों नहीं?

गौस−मैं थानेदार साहब के लिा थैली कहाँ से लाता?