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प्रेमाश्रम


बिलासी--(सिसकते हुए) फैजू और गौस खाँ इमारी सब गायें-भैसै कानी हौद हॉक ले गये।

बलराज—क्यों? क्या उनकी सर में पड़ी थी।

बिलासी—नहीं, कहते थे कि चरावर में चराने की मनाही हो गयी।

बलराज ने देखा कि माता कि आँखें झुकी हुई हैं और मुख पर मर्माघात की आशा झलक रही है। उसने उग्रवस्था में स्थिति को उससे कही भयंकर समझ लिया जितनी वह वस्तुत थी। कुछ और पूछने की हिम्मत न पड़ी। आँखें रक्तवर्ण हो गयीं। कन्धे पर लट्ठ रख लिया और मनोहर से बोला, मैं जरा गाँव तक जाता हूँ।

मनोहर—क्या काम है?

बलराज—फैजू और गौस खाँ से दो-दो बातें करनी है।

मनोहर—ऐसी बातें करने का यह मौका नहीं। अभी जाओगे तो बात बढ़ेगी और कुछ हाथ भी न लगेगा। चार आदमी तुम्हीं को बुरा कहेंगे। अपमान का बदला इस तरह नहीं लिया जाता।

मनोहर के इन शब्दों में इतना भयंकर संकल्प, इतना घातक निश्चय भरा हुआ था कि बलराज अधिक आग्रह न कर सका। उसने लाठी रख दी और माँ से कहा, अभी घर जाओ। हम लोग आयेंगे तो देखा जायगा।

मनोहर—नहीं घर मत जाओ। यही बैठो। साँझ को सब जने साथ ही चलेंगे। वह कौन दौड़ा आ रहा है? बिन्दा महाराज हैं क्या?

बलराज नहीं, कादिर दादा जान पड़ते हैं। हाँ, वही हैं। भागे चले जाते हैं। मालूम होता है गाँव में मारपीट हो गयी। दादा, क्या है? कैसे दौड़े आते हो, कुशल तो हैं।

कादिर ने दम ले कर कहा, तुम्हारे ही पास तो आते हैं। बिलासी रोती आयी है। मैं डरा तुम लोग गुस्से में न जाने क्या कर बैठो। चला कि राह में मिल जाओगे तो रोक लूँगा, पर तुम कहीं मिले ही नहीं। अब तो जो हो गया सो हो गया, आगे की खबर करो। आज से जमींदार ने चरावर रोक दी है। यह अन्धेर देखते हो?

मनोहर—हाँ, देख तो रहा हूँ, अन्धेर ही अन्धेर है।

कादिर—फिर अदालत जाना पड़ेगा।

मनोहर—चलो, मैं तैयार हूँ।

कादिर आज जाओ तो सलाह पक्की करके सवाल है दे। अब की हाईकोर्ट तक लड़ेगें, चाहे घर बिक जाय। बस, हल पीछे चन्दा लगा लिया जाय।

मनोहर-हाँ, यही अच्छा होगा।

कादिर-मैं नमाज पढ़ता था, सुनो बिलासी को बराबर में चपरासियों में बुराभला कहा और वह रोती हुई इधर आयी हैं। समझ गया कि आज गजब हो गया। बारे तुमने सबर से काम लिया। अल्लाह इसका सवाब तुमको देगा। तो मैं अब जाता हूँ, अपने चन्दे की बातचीत करता हूँ। जरा दिन रहते चले आना।