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प्रेमाश्रम

लखनपुर चले। बलराज गाड़ी हाँकता था और मनोहर पीछे-पीछे उच्च स्वर से एक बिरहा गाता हुआ चला आता था। राह में कल्लू अहीर मिला, बोला, मनोहर काका आज बड़े मगन हो। मनोहर का गाना समाप्त हुआ तो उसने भी एक बिरहा गाया। दोनों साथ साथ गाँव मे पहुँचे तो एक हलचल सी मची हुई थी। चारों ओर चरावर की ही चर्चा थी। कादिर के द्वार पर एक पंचायत सी बैठी हुई थी। लेकिन मनोहर पंचायत में न जा कर सीधा घर गया और जाते ही जाते भोजन माँगा। बहू ने रसोई तैयार कर रखी थी। इच्छापूर्ण भोजन करके नारियल पीने लगा। थोड़ी देर में बलराज़ भी पंचायत से लौटा। मनोहर ने पूछा, कहो, क्या हुआ?

बलराज—कुछ नहीं, यह सलाह हुई है कि खाँ साहब को कुछ नजर-वजर दे कर मना लिया जाय। अदालत से सब लोग घबड़ाते हैं।

मनोहर—यह तो मैं पहले ही समझ गया था। अच्छा जा कर चटपट खा-पी लो। आज मैं भी तुम्हारे साथ रखवाली करने चलूंगा। आँख लग जाय तो जगा लेना।

एक घंटे के बाद दोनों खेत की और चलने को तैयार हुए। मनोहर ने पूछा, कुल्हाड़ा खूब चलती है न?

बलराज—हाँ, आज ही तो रगड़ा है।

मनोहर—तो उसे ले लो।

बलराज—मेरा तो कलेजा थर-थर काँप रहा है।

मनोहर—काँपने दो। तुम्हारे साथ मैं भी तो रहूँगा। तुम दो-एक हाथ चलाके वहाँ से लम्बे हो जाना और सब मैं देख लूँगा। इस तरह आके सो रहना, जैसे कुछ जानते ही नहीं। कोई कितनी ही पूछे, डरावे-धमकावे मुँह मत खोलना। मैं अकेले ही जाता, मुदा एक तो मुझे अच्छी तरह सुझता नहीं, कई दिनों से रतौथी होती है, दूसरे हाथों में अब वह बल नहीं कि एक चोट में वारा-न्यारा हो जाय।

मनोहर यह बातें ऐसी सावधानी से कह रहा था मानो कोई साधारण घरेलू बातचीत हो। बलराज इसके प्रतिकूल शंका और भय से आतुर हो रहा था। क्रोध के आवेश मै वह आग में कूद सकता था, किन्तु इस पैशाचिक हत्या कांड से उसके प्राण सूख जाते थे।

खेत में पहुँच कर दोनों मचान पर लेटे। अमावस की रात थी। आकाश पर कुछ बादल भी हो आये थे। चारों ओर घोर अन्धकार छाया हुया था।

मनोहर तो लेटते ही खर्राटे लेने लगा, लेकिन बलराज पड़ा-पड़ा करवटे बदलता रहा। उसका हृदय नाना प्रकार की शकाओं को अविरल स्रोत बना हुआ था।

दो घड़ी बीतने पर मनोहर जागा, बोला, बलराज सो गयें क्या?

बलराज—नहीं, नींद नहीं आती।

मनोहर—अच्छा, तो अब राम का नाम है कर तैयार हो जाओ। डरने या घबराने की कोई बात नहीं। अपने मरजाद की रक्षा करना मरदों का काम है। ऐसे अत्याचारों को हम और क्या जवाब दे सकते हैं? बेइज्जत हो कर जीने से मर जाना अच्छा