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प्रेमाश्रम

यह मालूम होना चाहिए कि साँप के दाँत जहरीले होते हैं। जमीदारी करना साँप को नचाना है। वह सैपेरा अनाड़ी हैं जो साँप को काटने का मौका दे ! खैर, कातिल का कुछ पता चला ?

फैजू--जी हाँ, वही मनोहर अहीर है। उसने सबेरे ही थाने में जा कर एकवाल कर दिया। दोपहर को थानेदार साहब आ गये और तहकीकात कर रहे हैं। खाँ साहब का तार हुजूर को मिल गया था ? जिस दिन खाँ साहब ने चरावर को रोकने का हुक्म दिया उसी दिन गाँववालो में एका हो गया । खाँ साहब ने घवडा कर हुजूर को तार दिया । मैं तीन बजे तारघर से लौटा तो गाँव में मुकदमा लड़ने के लिए चदे का गुट्ट हो रहा था। रात को यह वारदात हो गयी।

अकस्मात् प्रेमशंकर लाला प्रभाशकर के साथ आ गये। ज्ञानशंकर को देखते ही प्रेमशंकर टूटकर उनसे गले मिले और पूछा, कब आयें ? सब कुशल है न ?

ज्ञानशकर ने रुखाई से उत्तर दिया, कुशल का हाल इन आदमियो से पूछिए जो अभी लखनपुर से आये हैं। गाँववालो ने गौस खाँ का काम तमाम कर दिया ।

प्रेमशकर स्तम्भित हो गये । मुँह से निकला, अरे । यह कब ?

ज्ञान--आज ही रात को ।

प्रेम--बात क्या है?

ज्ञान--गाँववालो की वदमाशी और सरकशी के सिवा और क्या बात हो सकती है। मैंने चरावर को रोकने का हुक्म दिया था। वहाँ एक बाग लगाने का विचार था। बस, इतना बहाना पा कर सब खून-खच्चर पर उद्यत हो गये ।

प्रेम--कातिल का कुछ पता चला ?

ज्ञान--अभी तो मनोहर ने थाने में जा कर एकवाल किया है।

प्रेम-–मनोहर तो बडा सीधा, गम्भीर पुरुष है।

ज्ञान--(व्यग से) जी हाँ, देवता था।

डाक्टर साहब ने मार्मिक भाव से देख कर कहा, यह किसी एक आदमी का फेल हर्गिज नही है।

ज्ञान--यही मेरा भी ख्याल है। मनोहर की इतनी मजाल नही है कि वह अकेला यह काम कर सके। निस्सन्देह सारा गाँव मिला हुआ है। मनोहर को सवने तवेले का बन्दर बना रखा है। देखिए थानेदार की तहकीकात का क्या नतीजा होता है। कुछ भी हो, अब मैं इस मौजे को वीरान करके ही छोडूँगा । क्यो फैजू, तुम्हारा क्या ख्याल है ? मनोहर अकेले यह काम कर सकता है ?

फैजू--नही हुजूर, साठ वरस का बुड्ढा भला क्या खा कर हिम्मत करता। और कोई चाहे उसका मददगार न हो, लेकिन उसका लडका तो जरूर ही साथ रहा होगा ।

कर्तार--वह बुड्ढा हैं तो क्या, बडे जीवट का आदमी है। उसके सिवा गाँव में किसी का इतना कलेजा नहीं है।

ज्ञान--तुम गँवार आदमी हो, इन बातो को क्या समझो। तुम्हें तो भंग का गोला