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प्रेमाश्रम

मेरे ऐसे दो-चार पत्र अवश्य ही निकल आयेंगे जिनसे गाँववालो के साथ भाई साहब की सहानुभूति और सदिच्छा सिद्ध हो सके। मैंने अपने कई पत्रो मे गौसखाँ को लिखा है कि भाई साहब का यह व्यवहार मुझे पसन्द नही। हाँ, एक बात हो सकती है। सम्भव है कि गाँववाले रिश्वत दे कर अपना गला छुडा लें और थानेदार अकेले मनोहर का चालान करे। लेकिन ऐसे संगीन मामले में थानेदार को इतना साहस नही हो सकता । वह यथासाध्य इस घटना को महत्त्वपूर्ण सिद्ध करेगा। भाई साहब से अधिकारीवर्ग उनके निर्भय लोकवाद के कारण पहले से ही बदगुमान हो रहा है। सब इन्सपेक्टर उन्हें इस षड्यन्त्र का प्रेरक साबित करके अपना रंग जरूर जमायेगा । अभियोग सफल हो गया तो उसको तरक्की भी होगी, पारितोषिक भी मिलेगा। गाँववाले कोई बड़ी रकम देने की सामर्थ्य नहीं रखते और थानेदार छोटी रकम के लिए अपनी आशाओ को मिट्टी में न मिलायेगा । बन्धु-विरोध का विचार मिथ्या हैं । ससार मे सब अपने ही लिए जीते और मरते है, भावुकता के फेर मे पड कर अपने पैरो मे कुल्हाडी मारना हास्यजनक है।

ज्ञानशकर को अनुमान अक्षरश सत्य निकला । लखनपुर के प्राय सभी वालिग आदमियो का चालान हुआ । विसेसर साह को टैक्स की धमकी ने भेदिया बना दिया । जमीदारी दफ्तर का भी निरीक्षण हुआ। एक सप्ताह पीछे हाजीपुर में प्रेमशकर की खाना-तलाशी हुई और वह हिरासत में ले लिये गये ।

सन्ध्या का समय था । ज्ञानशकर मुन्नू को साथ लिये हवा खाने जा रहे थे कि डाक्टर इर्फान अली ने यह समाचार कहा । ज्ञानशकर के रोये खडे हो गये और आँखों में आँसू भर आये । एक क्षण के लिए बन्धु-प्रेम ने क्षुद्रभावो को दबा दिया । लेकिन ज्यो ही जमानत का प्रश्न सामने आया, यह आवेग शान्त हो गया। घर में खबर हुई तो कुहराम मच गया। श्रद्धा मूर्छित हो गयी, बड़ी बहू तसल्ली देने आयी। मुन्नू भी भीतर चला गया और मा की गोद में सिर रख फूट-फूट कर रोने लगा।

प्रेमशंकर शहर से कुछ ऐसे अलग रहते थे कि उनका शहर के बड़े लोगों से बहुत कम परिचय था । वह रईसो से बहुत कम मिलते जुलते थे । कुछ विद्वज्जनो ने पत्र में उनके कृषि-सम्बन्धी लेख अवश्य देखे थे और उनकी योग्यता के कायल थे, किन्तु उन्हें झक्की समझते थे। उनके सच्चे शुभचिन्तको मे अधिकाश कालेज के युवक, दफ्तरों के कर्मचारी या देहातो के लोग थे। उनके हिरासत में आने की खबर पाते ही हजारो आदमी एकत्र हो गये और प्रेमशकर के पीछे-पीछे पुलिस स्टेशन तक गये, लेकिन उनमे कोई भी ऐसा न था, जो जमानत देने का प्रयत्न कर सकता।

लाला प्रभाकर ने सुना तो उन्मत्त की भाँति दौडे हुए ज्ञानशकर के पास जा कर बोले, बेटा, तुमने सुना ही होगा । कुल मर्यादा मिट्टी में मिल गयी । (रो कर) भैया की आत्मा को इस समय कितना दुःख हो रहा होगा । जिस मान-प्रतिष्ठा के लिए हमने जायदादँ बर्बाद कर दी वह आज नष्ट हो गयी । हाय ! भैया जीवनपर्यन्त कमी अदालत के द्वार पर नही गये । घर में चोरियाँ हुई, लेकिन कभी थाने में इत्तला तक ने की