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प्रेमाश्रम

बडी बहू--लडका तो ऐसा है कि भगवान सबको दे । बिलकुल वही लड़कपन का स्वभाव है, वहीं भोलापन, वही मीठी बातें, वहीं प्रेम । देख कर छाती फूल उठती है । घमड तो छू तक नही गया । पर दाना पानी छोडने से तो काम न चलेगा, चलो, कुछ थोडा सा खा लो।

प्रभाशकर--दस हजार नकद जमानत माँगी गयी है ।

बडी बहू--ज्ञानू से कहते क्यो नही कि मीठा-मीठा गप्प, कडबा-कडवा थू । प्रेमू का आधा नफा क्या श्रद्धा के भोजन-वस्त्रों में ही खर्च हो जाता है ?

प्रभाशकर--उससे क्या कहूँ, सुनें भी ? वह पश्चिमी सभ्यता का मारा हुआ है, जो लड़के को वालिग होते ही माता-पिता से अलग कर देती है। उसने वह शिक्षा पायी है जिसका मूलतत्व स्वार्थ है। उसमे अब दया, विनय, सौजन्य कुछ भी नहीं रहा। वह अब केवल अपनी इच्छाओं का, इन्द्रियों का दास है।

बडी बहू--तो तुम इतने रुपयो का प्रबन्ध करोगे ?

प्रभाशकर--क्या कहूँ, किसी से ऋण लेना पड़ेगा।

बडी बहू--ऐसा जान पड़ता है कि थोडा सा हिस्सा जो बचा हुआ है उसे भी अपने सामने ही ठिकाने लगा दोगे । यह तो कभी नहीं देखा कि जो रुपये एक बार , लिये गये वह फिर दिये गये हो। बस, जमीन के ही माथे जाती हैं।

प्रभाशंकर--जमीन मेरी गुलाम हैं, मैं जमीन का गुलाम नही हूँ।

बडी बहू--मैं कर्ज न लेने दूँगी । जाने कैसी पडे, कैसा न पड़े । अन्त में सब बोझ तो हमारे ही सिर पड़ेगा । लडको को कही बैठने का ठाँव भी न रहेगा।

प्रभाशकर ने पत्नी की ओर कठोर दृष्टि से देख कर कहा, मैं तुमसे सलाह नही लेता हूँ और न तुमको इसका अधिकारी समझता हूँ। तुम उपकार को भूल जाओ, मैं नही भूल सकता । मेरा खून सफेद नहीं है। लडको की तकदीर में आराम लिखा होगा आराम करेंगे, तकलीफ लिखी होगी तकलीफ भोगेंगे। मैं उनकी तकदीर नही हूँ । आज दयाशकर पर कोई बात आ पड़े तो गहने बेच डालने में भी किसी को इनकार न होगा। मैं प्रेमू को दयाशकर से जी भर भी कम नहीं समझता।

बडी बहू ने फिर भोजन करने के लिए अनुरोध किया और प्रभाशकर फिर नहीं-नहीं करने लगे । अन्त में उसने कहा, आज कद्दू के कबाव बने हैं। मैं जानती कि तुम न खाओगे तो क्यो बनवाती ?

प्रभाशकर की उदासीनता लुप्त हो गयी । उत्सुक हो कर बोले, किसने बनाये हैं।

बड़ी बहू--बहू ने ।

प्रभा--अच्छा तो थाली परसाओ । भूख तो नही है, पर दो-चार कौर खा ही लूँगा।

भोजन के पश्चात् प्रभाशकर फिर उसी चिन्ता में मग्न हुए । रुपये कहाँ से आये ? बेचारे प्रेमशकर को आज फिर हिरामत में रात काटनी पड़ी। बडी बहू ने स्पष्ट शब्दो में कह दिया था कि मैं कर्ज न लेने दूँगी और यहाँ कर्ज के सिवा ओर कोई तदबीर ही न थी । आज लाला जी फिर सारी रात जागते रहे। उन्होंने निश्चय कर लिया कि