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प्रेमाश्रम

घरवाले चाहे जितना विरोध करें, पर मैं अपना कर्तव्य अवश्य पूरा करूँगा । भोर होते ही वह सेठ दीनानाय के पास जा पहुँचे और अपनी विपत्ति-कया कह सुनायी । सेठ जी से उनका पुराना व्यवहार था । उन्ही की बदौलत सेठ जी जमीदार हो गये थे । मामला करने पर राजी हो गये । लिखा-पढ़ी हुई और दस बजते-बजते प्रभाशकर के हाथों में दस हजार की थैली आ गयी । वह ऐसे प्रसन्न थे मानो कहीं पडा हुआ धन मिल गया हो । गद्गद् हो कर बोले, सेठ जी, किन शब्दों में आपको धन्यवाद दूँ, आपने मेरे कुल की मर्यादा रख ली । भैया की आत्मा स्वर्ग में आपका यश गायेगी ।

यहाँ से वह सीधे कचहरी गये और जमानत के रुपये दाखिल कर दिये । इस समय उनका हृदय ऐसा प्रफुल्लित था जैसे कोई बालक मेला देखने जा रहा हो। इस कल्पना से उनका कलेजा उछल पड़ता था कि भैया मेरी भक्ति पर कितने मुग्ध हो रहे होगे !

११ बजे का समय था । मैजिस्ट्रेट के इजलास पर लखनपुर के अभियुक्त हाथों में हथकड़ियाँ पहने लड़े थे । शहर के सहबो मनुष्य इन विचित्र जीवधारियों को देखने के लिए एकत्र हो गये थे । सभी मनोहर को एक निगाह देखने के लिए उत्सुक हो रहे थे। कोई उसे धिक्कारता था, कोई कहता था अच्छा किया । अत्याचारियों के साथ ऐसा ही करना चाहिए । सामने एक वृक्ष के नीचे विलासी मन मारे बैठी हुई थी। वलराज के चेहरे पर निर्भयता झलक रही थीं। डपटसिंह और दुखरन भगत चिन्तित दीख पडते थे । कादिर खाँ वैर्य की मूर्ति बने हुए थे। लेकिन मनोहर लज्जा और पश्चासाप से उद्विग्न हो रहा था । वह अपने साथियों से आँख न मिला सक्ता था। मेरी ही बदौलत गाँव पर यह आफत आयी है, यह खयाल उसके चित्त से एक क्षण के लिए भी न उतरता था। अभियुक्तो से जरा हट कर विसेसर साह खड़े थे--ग्लानि की नजीब मूर्ति बने। पुलिस के कर्मचारी उन्हें इस प्रकार घेरे थे, जैसे किसी मदारी को बालक-बृन्द घेरे रहते हैं। सबसे पीछे प्रेमशकर थे, गम्भीर और आदम्य । मैजिस्ट्रेट ने सूचना दी--प्रेमशकर जमानत पर रिहा किये गये ।

प्रेमशकर ने सामने आ कर कहा, मैं इस दया-दृष्टि के लिए आपका अनुगृहीत हूँ, लेकिन जब मेरे ये निरपराव भाई वेडियाँ पहने खडे है तो मैं उनका साथ छोड़ना उचित नहीं समझता ।

अदालत में हजारों ही आदमी खड़े थे। सब लोग प्रेमशकर को विस्मित हो कर देखने लगे । प्रभाकर करुणा से गद्गद् हो कर बोले, बेटा मुझपर दया करो। कुछ मेरो दौड़-धूप, कुछ अपनी कुल-मर्यादा और कुछ अपने सम्बन्धियों के शोक-विलाप का ध्यान करो। तुम्हारे इस निश्चय से मेरा हृदय फ्टा जाता है।

प्रेमाशकर ने आँखो में आँसू भरे हुए कहा, चाचा जी, मै आपके पितृवत् प्रेम और मदिच्छा का हृदय से अनुगृहीत हूँ। मुझे आज ज्ञात हुआ कि मानव-हृदय कितना पवित्र, कितना उदार, कितना वात्सल्यमय हो सकता है। पर मेरा साथ छूटने से इन वेचारों की हिम्मत टूट जायगी, ये सब हताश हो जायँगे । इसलिए मेरा इनके साथ