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प्रेमाश्रम

प्रेमशकर ने लखनपुरवालो की बेगार बन्द करने की कोशिश की थी और तहसीलदार से लड़ने पर आमादा हो गये थे ?

ज्ञान--मुझे इसकी खबर नहीं।

वकील--आप यह तो जानते है कि जब आपने बेशी लगान का दावा किया था तब प्रेमशकर ने गाँववालो को ५०० रु० मुकदमे की पैरवी करने के लिए दिये थे ?

ज्ञान--मुझे इस विषय में कुछ नहीं मालूम है।

ज्ञानशंकर की गवाही हो गयी । सरकारी वकील का मुँह लटक गया। लेकिन दर्शक गण एक स्वर से कहने लगे, भाई फिर भी भाई ही है, चाहे एक दूसरे के खून का प्यासा क्यों न हो।

इसके बाद मिस्टर ज्वालासिंह इजलास पर आये। उन्होंने कहा, मैं यहाँ कई साल तक हाकिम बना रहा। लखनपुर मेरे ही इलाके में था। कई बार वहाँ दौरा करने गया । याद नहीं आता कि वहाँ गाँववालो से रसद या बेगार के बारे में उससे ज्यादा झझट हुआ हो जितना दूसरे गाँव मे होता है। मेरे इजलास में एक बार बाबू ज्ञानशकर ने इजाफा लगान का दावा किया था, लेकिन मैंने उसे खारिज कर दिया था।

सरकारी वकील--आपको मालूम है कि उस मामले की पैरवी के लिए प्रेमशंकर ने लखनपुरवालों को ५०० रु० दिये थे।

ज्वालासिंह--मालूम है । लेकिन मैं समझता हूँ, उनको यह रुपये किसी दूसरे आदमी ने गाँववालो की मदद के लिए दिये थे।

वकील--आपको यह तो मालूम ही होगा कि प्रेमशकर की उस गाँव मे बहुत आमदरफ्त रहती थी ?

ज्वाला--हाँ, वह ताऊन या दूसरी बीमारियो के अवसर पर अक्सर वहाँ जाते थे।

यह गवाही भी पूरी हो गयी। सरकारी वकील के सभी प्रश्न व्यर्थ सिद्ध हुए।

तब बिसेसर साह इजलास पर आये । उनका बयान बहुत विस्तृत, क्रमबद्ध और सारगर्भित था, मानो किसी उपन्यासकार ने इस परिस्थिति की कल्पनापूर्ण रचना की हो। सबको आश्चर्य हो रहा था कि अपढ गॅवार में इतना वाक्य-चातुर्य कहाँ से आ गया ? उसके घटना प्रकाश में इतनी वास्तविकता का रग था कि उसपर विश्वास न करना कठिन था। गौस खाँ के साथ गाँववालो को शत्रुभाव, बेगार के अवसरों पर उनसे हुज्जत और तकरार, चरावर को रोक देने पर गाँववालो का उत्तेजित हो जाना, रात को सब आदमियों का मिल कर गौस खाँ का वध करने की तदवीरें सोचना, इन सब बातो की अत्यन्त विशद विवेचना की गयी थी। मुख्यत षड्यन्त्र-रचना का वर्णन ऐसा मूर्तिमान और मार्मिक था कि उस पर चाणक्य भी मुग्ध हो जाता । रात को नौ बजे मनोहर ने आ कर कादिर खाँ से कहा, बैठे क्या हो ? चरावर रोक दी गयी, चुप लगाने से काम न चलेगा, इसका उपाय करो। कादिर खाँ चौकी पर बैठे नमाज पढ़ने के लिए बजू कर रहे थे, बोले, बैठ जाओ, अकेले हम-तुम क्या बना लेगे ? जब