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प्रेमाश्रम

मुसल्लम गाँव की राय हो तभी कुछ हो सकता है, नही तो इस तरह कारिन्दा हमको दवाता जायगा । एक दिन खेत से भी बेदखल कर देगा, जाके दुखरन भगत को बुला लाओ । मनोहर दुखरन के घर गये । मैं भी मनोहर के साथ गया । दुखरन ने कहा, मेरे पैर में काँटा लग गया है, मैं चल नहीं सकता। खाँ साहब को यही बुला लाओ । मैं जा कर कादिर खाँ को बुला लाया। मनोहर, डपटसिंह और कल्लू को बुला लायें । कादिर खाँ ने कहा, हम लोग गँवार हैं, अपने मन से कोई बातें करेगे तो न जाने चित पड़े या पट, चल कर बाबू प्रेमशंकर से सलाह लो। डपटसिंह बोले, उनके पास जाने की क्या जरूरत है ? मैं जा कर उन्हें बुला लाऊँगा। दूसरे दिन साँझ को बाबू प्रेमशकर एक्के पर सवार हो कर आये। मैं दूकान बढा रहा था । मनोहर ने आ कर कहा, चलो बाबू साहब आये है। मैं मनोहर के साथ कादिर के घर गया। प्रेमशकर ने कहा, ज्ञान बाबू मेरे भाई है तो क्या, ऐसे भाई की गर्दन काट लेनी चाहिए । कादिर ने कहा, हमारी उनसे कोई दुश्मनी नहीं है, हमारा वैर तो गौस खाँ से है। इस हत्यारे ने इस गाँव मे हम लोगों का रहना मुश्किल कर दिया है। अब आप बताइए, हम क्या करे ? मनोहर ने कहा, यह बेइज्जती नही सही जाती । प्रेमशकर बोले, मर्द हो कर के इतना अपमान क्यो सहते हो ? एक हाथ में तो काम तमाम होता है । कादिर खाँ ने कहा, कर तो डाले, पर सारा गाँव बँध जायगा । प्रेमशकर बोले, ऐसी नादानी क्यो करो? सब मिल कर नाम किसी एक आदमी का ले लो। अकेले आदमी का यह काम भी नही है। तीन-तीन प्यादे हैं। गौस खाँ खुद बलवान आदमी है । कादिर खाँ बोले, जो कही सारा गाँव फँस जाय तो ? प्रेमशकर ने कहा, ऐसा क्या अन्धेर है ? वकील लोग किस मरज की दवा है? इसी बीच में मैं खाने घर चला आया । प्रेमशकर भी रात को ही एक्के पर लौट गये । रात को १२-१ बजे मुझे कुछ खटका हुआ। घर के चारो ओर घूमने लगा कि इतने में कई आदमी जाते दिखायी दिये। मैं समझ गया कि हमारे ही साथी हैं। कादिर का नाम ले कर पुकारा । कादिर ने कहा, सामने से हट जाओ, टोक मत मारो, चुपके से जा कर पड़ रहो । कादिर खाँ से अब न रहा गया । विसेसर साह की ओर कठोर नेत्रो से देख कर कहा, विसेसर ऊपर अल्लाह है, कुछ उनका भी डर है?

सरकारी वकील ने कहा, चुप रहो, नही तो गवाह पर बेजा दबाव डालने का दूसरी दफा लग जायेगा।

सन्ध्या समय ये लोग हिरासत में बैठे हुए इधर-उधर की बाते कर रहे थे । मनोहर अलग एक कोठरी में रखा गया था। कादिर ने प्रेमशंकर से कहा, मालिक आप तो हकनाक इस अफित में फँसे । हम लोग ऐसे अभागे है कि जो हमारी मदद करता है उसपर भी आँच आ जाती है। इतनी उमिर गुजर गयी, सैकडो पढ़े-लिखे आदमियो को देखा, पर आपके सिवा और कोई ऐसा न मिला, जिसने हमारी गरदन पर छूरी न चलायी हो । विद्या की सारी दुनिया बडाई करती है। हमे तो ऐसा जान पडना है कि विद्या पढ़ कर आदमी और भी छली-कपटी हो जाता है । वह गरीब का