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प्रेमाश्रम

न था कि वह इस आधार पर निर्दोष ठहराये जायेगे। वह तुरंत ताड़ गये कि यह चचा साहब की करामात है, और वास्तव मे था भी यही। प्रेमशंकर को जब वकीलों से कोई आशा न रही तो उन्होने कौशल से काम लिया और दो ढाई हजार रुपयों का बल्दिान करके यह वरदान पाया था। रिश्वत, खुशामद, मिष्ठालाप यह सभी उनको दृष्टि मे हिरासत से बचने के लिए क्षम्य था।

प्रेमशंकर ने जेलर से कहा, यदि नियमों के विरुद्ध न हो तो कम से कम मुझे रातभर और यहा रहने की आज्ञा दीजिए। जैलर ने विस्मित हो कर कहा, यह आप कया कहते हैं? आपका स्वागत करने के लिए सैकड़ो आदमी बाहर खड़े हैं।

प्रेमशंकर ने विचार किया, इन गरीबो को मेरे यहा रहने से कितना ढाढ़स था। कदाचित् उन्हें आशा थी कि इनके साथ हम लोग भी बरी हो जायेगे। मेरे चले जाने से यह सब निराश हो जायेगे। उन्हें तसल्ली देते हुए बोले, भाइयों, मुझे निराश हो कर तुम्हारा साथ छोड़ना पड़ रहा है, पर मेरा हृदय आपके ही साथ रहेगा। संभव है, बाहर आकार मैं आपकी कुछ सेवा कर सकूँ। मैं प्रति दिन आपसे मिलता रहूँगा।

साथियों से विदा हो कर ज्यों ही वह फाटक पर पहुंचे कि लाला प्रभाशंकर ने दौड़ कर उन्हे छाती से लगा लिया। जेल के चपरासियों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया और इनाम मांगने लगे। प्रभाशंकर ने हर एक को दो-दो रुपए दिये। बग्धी चलने ही वाली थी कि बाबू ज्वालासिंह अपनी मोटर साइकिल पर आ पहुँचे और प्रेमशंकर के गले लिपट गए प्रभाशंकर चाहते थे कि दोनों मित्रों को अपने घर ले जाएँ और उनकी दावत करे किन्तु प्रेमशंकर ने पहले हाजीपुर जा कर फिर लौटने का निश्चय किया। ज्योंही बग्धी बगीचे में पहुँची, हलवाहे और माली सब दौड़े और प्रेमशंकर के चारों और खड़े हो गये है।

प्रेम—क्यों जी दमड़ी, जुताई हो रही है न?

दमड़ी ने लज्ति हो कर कहा, मालिक, औरो को तो नहीं कहता, पर मेरा मन काम करने में जरा भी नहीं लगता था। यही चिन्ता लगी रहती थी कि साहब न जाने कैसे होंगे? (निकट आ कर) भोला एक टोकरी अमरूद तोड़ कर बैच लाया हैं।

भोला—दमड़ी तुमने सरकार के कान में कुछ कहा तो ठीक न होगा। मुझे जानते हो कि नहीं? यहाँ जेहल से नहीं डरते! जो कुछ कहना हो मुंह पर बुरा-भला कहो।

दमड़ी—तो तुम नाहक जामे से बाहर हो गये। तुम्हें कोई कुछ थोड़े ही कहता है।

भोला—तुमने कानाफूसी की क्यों? मेरी बात न कही होगी, किसी और की कही होगी। तुम कौन होते हो किसी की चुगली खानेवाले?

मस्ता कोरी ने समझाया—भोला तुम खमखा झगड़ा करने लगते हो। तुमसे क्या मतलब? जिसके जी मे आता है मालिक से कहता हैं। तुम्हें क्यो बुरा लगता है?

भोला—चुगली खाने चले है, कुछ काम करे न धंधा, सारे दिन नशा खाये पड़े रहते है इनका मुँह है कि दूसरों की शिकायत करे।