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प्रेमाश्रम

उधर स्वार्थ सेवा का आधिपत्य है । चचा साहब जैसा भोजन करते है, वैसा अच्छे-अच्छे रईसो को भी मयस्सर नहीं होता । वह स्वय पाक-शास्त्र में निपुण है। लेकिन खाने का इतना शौक नही है, जितना खिलाने का । मेरा तो जी चाहता है कि अवकाश मिले तो यह विद्या उनमे सीखूँ ।

दोनो मित्रो ने जलपान किया और लाला प्रभाशकर से विदा हो कर घर से निकले । ज्वालासिंह ने कहा, कोई वकील ठीक करना चाहिए ।

प्रेम--हाँ, यही सबसे जरूरी काम है। देखें, कोई महाशय मिलते हैं या नही । चचा साहब को तो लोगों ने साफ जवाब दे दिया ।

ज्वाला--डाक्टर इफनिअली से मेरा खूब परिचय है। आइए, पहले वहीं चले।

प्रेम--वह तो शायद ही राजी हो । ज्ञानशकर से उनकी बातचीत पहले ही हो चुकी है।

ज्वाला--अभी वकालतनामा तो दाखिल नहीं हुआ। ज्ञानशकर ऐसे नादान नहीं है कि ख्वाहमख्वाह हजारो रुपयो का खर्च उठाये ! उनकी जो इच्छा थी वह पुलिस के हाथो पूरी हुई जाती है। सारा लखनपुर चक्कर में फँस गया। अब उन्हें वकील रख कर क्या करना है ?

डाक्टर महोदय अपने बाग में टहल रहे थे। दोनो सज्जनो को देखते ही बढ़कर हाथ मिलाया और बँगले में ले गये ।

डाक्टर--(ज्वालासिंह से) आपसे तो एक मुद्दत के बाद मुलाकात हुई है। आजकल तो आप हरदोई में हैं न ? आपके बयान ने तो पुलिसवालो की बोलती ही बन्द कर दी । मगर याद रखिए, इसका परिणाम आपको उठाना पड़ेगा।

ज्वाला--उसकी नौवत ही न आयेगी। इन दो-रगी चालो से नफरत हो गयी । इस्तीफा देने का फैसला कर चुका हूँ ।

डाक्टर–-हालत ही ऐसी है कि कोई खुददार आदमी उसे गगरा नहीं कर सकता। बस यहाँ उन लोगो की चाँदी है जिनके कान्शस मुरदा हो गये है। मेरे ही पेशे को लीजिए, कहा जाता है कि यह आजाद पेशा है। लेकिन लाला प्रभाशकर को सारे शहर में (प्रेमशकर की तरफ देख कर) आपकी पैरवी करने के लिए कोई वकील न मिला । मालूम नही, वह मेरे यहाँ तशरीफ क्यो नहीं लाये ।

ज्वाला--उस गलती की तलाफी (प्रायश्चित) करने के लिए हम लोग हाजिर हुए हैं। गरीब किसानों पर आपको रहम करना पडेगा।

डाक्टर--मैं इस खिदमत के लिए हाजिर हूँ। पुलिस से मेरी पुरानी दुश्मनी है। ऐसे मुकदमो की मुझे तलाश रहती है। बस, यही मेरा आखिरी मुकदमा होगा । मुझे भी वकालत से नफरत हो गयी है। मैंने युनिवर्सिटी में दरख्वास्त दी है। मजूर हो गयी तो वोरिया-वधना समेट कर उधर की राह लूँगा ।