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प्रेमाश्रम

 इलाके का प्रबंध मेरे सुपुर्द कर दिया है तो मुझी को करने दीजिए। यह शब्द अनायास मेरे मुंह से निकल गया। मैं इसके लिए बहुत लज्जित हैं। भाई ज्वालासिंह, में चचा साहब का जितना अदब करता हूँ उतना अपने पिता को भी नहीं किया। मैं स्वयं गरीब आदमियों पर सख्ती करने का विरोधी हूँ। इस विषय मे आप मैरे विचारों से भली भाँति परिचित हैं। किंतु इसका यह आशय नहीं है कि हम दीनपालन की धुन में इलाके से ही हाथ धो बैठे? पुराने जमाने की बात और थी। तब जीवन संग्राम इतना भयंकर न था, हमारी आवश्यकताएँ परिमित थी, सामाजिक अवस्था इतनी उन्नत न थी और सब से बड़ी बात तो यह है कि भूमि का मूल्य इतना चढ़ा हुआ न था। मेरे कई गाँव जो दो-दो हजार पर बिक गये हैं, उनके दाम आज बीस हजार लगे हुए हैं। उन दिनों असामी मुश्किल से मिलते थे, अब एक टुकड़े के लिए सौ-सौ आदमी मुँह फैलाये हुए हैं। यह कैसे हो सकता है कि इस आर्थिक दशा का असर जमींदार पर न पड़े।

लाला प्रभाशंकर को अपने अप्रिय शब्द का बहुत दुख हुआ, जिस भाई को वह देवतुल्य समझते थे, उसी के पुत्र से द्वेष करने पर उन्हें बड़ी ग्लानि हुई। बोले, भैया, इन बातों को तुम जितना समझोगे मैं बूढ़ा आदमी उतना क्या समझूँगा? तुम घर के मालिक हो। मैंने भूल की कि बीच में कूद पड़ा। मेरे लिए एक टुकड़ा रोटी के सिवा और किसी चीज की आवश्यकता नहीं है। तुम जैसे चाहो वैसे घर को सँभालो।

थोड़ी देर तक सब लोग चुप-चाप बैठे रहे। अंत में गौस खाँ ने पूछा, हुजूर, मनोहर के बारे में क्या हुक्म होता है?

ज्ञानशंकर−इजाफा लगान का दावा कीजिए?

कादिर-सरकार, वह गरीब आदमी है, मर जायेगा।

ज्ञानशंकर---अगर इसकी जोत में कुछ सिकमी जमीन हो तो निकाल लीजिए।

कादिर-सरकार, बेचारा बिना मारे मर जायगा।

ज्ञानशंकर- उसकी परवाह नहीं, असामियों की कमी नहीं है।

कादिर-हुजूर....

ज्ञानशंकर—चुप रहो, मैं तुमसे हुज्जत नहीं करना चाहता।

कादिर--सरकार, जरा....

ज्ञानशंकर---बस, कह दिया कि जबान मत खोलो।

मनोहर अब तक चुपचाप खड़ा था। प्रभाशंकर की बात सुनकर उसे आशा हुई थी कि यहाँ आना निष्फल नहीं हुआ। उनकी विनयशीलता ने वशीभूत कर लिया था। ज्ञानशंकर के कटु व्यवहार के सामने प्रभाशंकर की नम्रता उसे देवोचित प्रतीत होती थी। उसके हृदय में उत्कंठा हो रही थी कि अपना सर्वस्व लाकर इनके सामने रख दें और कह दें कि यह मेरी ओर से बड़े सरकार की भेंट है। लेकिन ज्ञानशंकर के अंतिम शब्दों ने इन भावना को पद-दलित कर दिया। विशेषतः कादिर मियाँ का अपमान उसे असह्य हो गया। तेवर बदल बोला, दादा, इस दरबार से अब दया