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प्रेमाश्रम

'चालीस वर्ष ।'

'आपका मकान कहाँ है ?'

'दिल्ली ।'

'आपकी शादी हुई है ? अगर हुई है तो औलाद है या नही ?'

'मेरी शादी हो गयी है और कई औलाद है।'

'उनकी परवरिश पर आपका माहवार कितना खर्च होता है ।'

इर्फान अली यह प्रश्न ऐसे पाडित्य-पूर्ण स्वाभिमान से पूछ रहे थे, मानो इन्ही पर मुकदमे का दामदार है। प्रत्येक प्रश्न पर ज्वालासिंह की ओर गर्व के साथ देखते मानो उनसे अपनी प्रखर नैयायिकता की प्रशसा चाहते है। लेकिन इन अन्तिम प्रश्न पर मैजिस्ट्रेट ने एतराज किया, इस प्रश्न से आप का क्या अभिप्राय है ?

इर्फान अली ने गर्व से कहा--अभी मेरा मन्शा जाहिर हुआ जाता है।

यह कह कर उन्होंने प्रियनाथ से जिरह शुरु की । बेचारे प्रियनाथ मन में सहमे जाते थे। मालूम नहीं यह महाशय मुझे किस जाल में फॉस रहे है।

इर्फान अली--आप मेरे आखिरी सवाल का जवाब दीजिए ?

'मेरे पास उसका कोई हिसाब नहीं है।'

'आपके यहाँ माहवार कितना दूध आता है और उसकी क्या कीमत पडती हे ?'

‘इसका हिसाब मेरे नौकर रखते हैं।'

‘घीं पर माहवार क्या खर्च होता है ?'

'मैं अपने नौकरी से पूछे वगैर इन गृह-सम्बन्धी प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकता।'

इर्फान अली ने मैजिस्ट्रेट से कहा, मेरे सवालो के काविल इतमीनान जवाब मिलने चाहिए।

मैजिस्ट्रेट--मैं नही समझता कि इन सवालो मे आपकी मन्शा क्या है ?

इर्फान अली--मेरा मन्या गवाह की एखलाकी हालत का परदा फाश करना है। इन सवालो से मैं यह साबित कर देना चाहता हूँ कि वह बहुत ऊँचे वसूली का आदमी नहीं है।

मैजिस्ट्रेट--मैं इन प्रश्नो को दर्ज करने से इन्कार करता हूँ।

इर्फान अली--तो मै भी जिरह करने से इन्कार करता हूँ।

यह कह कर बारिस्टर साहब इजलास से बाहर निकल आये और ज्वालासिंह से बोले, आपने देखा, यह हजरत कितनी बेजा तरफदारी कर रहे है । वल्लाह । मै डाक्टर साहूब के लते उड़ा देता । यहाँ ऐसी-वैसी जिरह न करते । मैं साफ साबित कर देता कि जो आदमी छोटी-छोटी रकमो पर गिरता है वह ऐसे बडे मामले में वेलौस नही रह सकता। कोई मुजायका नही। दीवानी में चलने दीजिए, वहाँ इनकी खबर लूँगा।

इसके एक घटा पीछे मैजिस्ट्रेट ने फैसला सुना दिया--सर्व अभियुक्त सेशन सुपुर्द ।

सन्ध्या हो गयी थी। ये विपत्ति के मारे फिर हवालात चले । सवो के मुख पर