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प्रेमाश्रम

चौपट हो गया। अनाथ लडको और औरतो की कौन सुध लेनेवाला है ? बेचारे रोटियो को तरसते होगे । तुमने सारे गाँव को मटियामेट कर दिया।

मनोहर को स्वय आठो पहर यही शोक सताया करता था। गौस खाँ का बध करते समय भी उसे यही चिंता थी। इसलिए उसने खुद थाने में जा कर अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। गाँव को आफत से बचाने के लिए उसके किये जो कुछ हो सकता था वह उसने किया और उसे दृढ विश्वास था कि वाहे मुझे दुष्कृत्य पर कितना ही पश्चात्तप हो रहा हो, अन्य लोग मुझे क्षम्य ही न समझते होगे, मुझसे सहानुभूति भी रखते होगे । मुझे जलाने के लिए अन्दर की आग क्या कम है किं ऊपर से भी तेल छिडका जाय । वह दुखरन की ये कटु बातें सुन कर विलविला उठा, जैसे पके हुए फोडे मे ठेस लग जाय। कुछ जवाब न दे सका।

आज अभियुक्तो के लिए प्रेमशकर ने जेल के दारोगा की अनुमति से कुछ स्वादिष्ट भोजन बनवा कर भेजे थे। अपने उच्च सिद्धान्त के विरुद्ध वह जेलखाने के छोटे-छोटे कर्मचारियों की भी खातिर-खुशामद किया करते थे, जिसमें वे अभियुक्तो पर कृपा दृष्टि रखें। जीवन के अनुभवों ने उन्हे बतला दिया था कि सिद्धान्तों की अपेक्षा मनुष्य अधिक आदरणीय वस्तु है। औरो ने तो इच्छापूर्ण भोजन किया, लेकिन मनोहर इस समय हृदय ताप से विकल था । उन पदार्थों की रुचि-वर्द्धक सुगन्धि भी उसकी क्षुधा को जागृत न कर सकी। आज वह शब्द उसके कानो मे गूँज रहे थे जो अब तक केवल हृदय में ही सुनायी देते थे--तुम्हारे कारण सारा गाँव मटियामेट हो गया, तुमने सारे गाँव को चौपट कर दिया । हा, यह कलक मेरे माथे पर सदा के लिए लग गया, अब यह दाग कभी न छूटेगा । जो अभी बालक है वे मुझे गालियाँ दे रहे होगे । उसके बच्चे मुझे गाँव का द्रोही समझेंगे । जव मरद के यह विचार है, जो सब बाते जानते है, जिन्हें भली-भाँति मालूम है कि मैने गाँव को बचाने के लिए अपनी ओर से कोई बात उठा नहीं रखी और जो यह अन्धेर हो रहा है वह समय का फेर है, तो भला स्त्रियाँ क्या कहती होगी, जो बेसमझ होती है । बेचारी विलासी गाँव में किसी को मुँह न दिखा सकती होगी। उसका घर से निकलना मुश्किल हो गया होगा और क्यों न कहे ? उनके सिर पर बीत रही है तो कहेगे क्यो न ? अभी तो अगहनी घर में खाने को हो जायगी, लेकिन खेन तो बोये न गये होगे । चैत में जब एक दाना भी ने उपजेगा, बाल-बच्चे दाने-दाने को रोयेगें तब उनकी क्या दशा होगी । मालूम होता है इस कम्बल में खटमल हो गये है, नीचे डालते है, और यह रोना साल दो साल का नहीं है, कही सब काले पानी भेज दिये गये तो जन्म भर का रोना है। कादिर मियाँ का लडक़ा तो घर सँभाल लेगा, लेकिन और सभी तो मिट्टी में मिल जायेंगे और यह सब मेरी करनी को फल है ।

सोचते-सोचते मनोहर को झपकी आ गयी। उसने स्वप्न देखा कि एक चौड़े मैदान में हजारो आदमी जमा है । फाँसी खडी है और मुझे फाँसी पर चढ़ाया जा रहा है। हजारी आँखें मेरी ओर धृणा की दृष्टि से ताक रही है। चारो तरफ से यही ध्वनि