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प्रेमाश्रम


धर्म उठ गया। चलो, भगवान की जो इच्छा होगी, वह होगा। जिसने मुंह चीरा है। बह् खाने को भी देगा। भीख नहीं तो परदेश तो कहीं नहीं गया है?

यह कह कर उसने कादिर का हाथ पकड़ा और उसे जबरदस्ती खींचता हुआ दीवानखाने से बाहर निकल गया। ज्ञानशंकर को इस समय इतना क्रोध आ रहा था। कि यदि कानून का भय न होता तो वह उसे जीता चुनवा देते। अगर इसका कुछ अंश मनोहर को डाँटने-फटकारने में निकल जाता तो कदाचित् उनकी ज्वाला कुछ शांत हो जाती, किंतु अब हृदय में खौलने के सिवा उनके निकलने का कोई रास्ता न था। उनकी दशा उस बालक की-सी हो रही थी, जिसका हमजोली उसे दाँत काट कर भाग गया हो। इस ज्ञान से उन्हें शांति न होती थी कि मैं इस मनुष्य के भाग का विघाता हैं, आज इसे पैरों तले कुचल सकता हूँ। क्रोध को दुर्वचन से विशेष रुचि होती है।

ज्वालासिंह मौनी बने बैठे थे। उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि ज्ञानशंकर में इतनी दयाहीन स्वार्थपरता कहाँ से आ गयी? अभी क्षण भर पहले यह महाशय न्याय और लोक-सेवा का कैसा महत्त्वपूर्ण वर्णन कर रहे थे। इतनी ही देर में यह कायापलट। विचार और व्यवहार में इतना अंतर? मनोहर चला गया तो ज्ञानशंकर से बोले, इजाफा लगान का दावा कीजिएगा तो क्या उसकी ओर से उज़्रदारी न होगी? आप केवल एक असामी पर दावा नहीं कर सकते।

ज्ञानशंकर-हाँ, यह बात ठीक कहते हैं। खाँ साहब, आप उन असामियों की एक सूची तैयार कीजिए, जिन पर कायदे के अनुसार इजाफा हो सकता है। क्या हरज है, लगे हाथ सारे गाँव पर दावा हो जाय?

ज्वालासिंह ने मनोहर की रक्षा के लिए यह शंका की थी। उसका सह विपरीत फल देख कर उन्हें फ़िर कुछ कहने का साहस न हुआ} उठ कर ऊपर चले गये।


एक महीना बीत गया, गौस खाँ ने असामियों की सूची में तैयार की और न ज्ञानशंकर ने ही फिर ताकीद की। गौस खाँ के स्व-हित और स्वामि-हित में विरोध हो। रहा था और ज्ञानशंकर सोच रहे थे कि जब इजाफे से सारे परिवार को लाभ होगा तो मुझको क्या पड़ी है कि बैठे-बिठाये सिर-दर्द मोल लें। सैकड़ों गरीबों का गला तो मैं दबाऊँ और चैन सारा घर करे। वह इस सारे अन्याय का लाभ अकेले ही उठाना चाहते थे, और लोग भी शरीक हों, यह उन्हें स्वीकार न था। अब उन्हें रात-दिन यही दुश्चिता रहती थी कि किसी तरह चचा साहब से अलग हो जाऊँ। यह विचार सर्वथा उनके स्वार्थानुकूल था। उनके ऊपर केवल तीन प्राणियों के भरण-पोषण का भार था--- : आप, स्त्री और भावज। लड़का अभी दूध पीता था। इलाके की आमदनी का बड़ा भाग प्रभाशंकर के काम आता था, जिनके तीन पुत्र थे, दो पुत्रियां, एक बहू, एक पोता और स्त्री-पुरुष आप। ज्ञानशंकर अपने पिता के परिवार-पालन पर झुंझलाया करते।