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प्रेमाश्रम

अभी न जाने कितने दिन यह मामला चलेगा । महीने भर लगे, दो महीने लग जाये। इतने दिनो तक मैं सब की आँखों में काँटे की तरह खटकता रहूँगा, सब मुझे कोसेंगे, गालियाँ दिया करेंगे । आज दुखरन ने कह ही सुनाया, कल कोई और ताना देगा । कादिर खाँ को भी यह कैद अखरती ही होगी। और तो और, कहीं वलराज भी न खुल पडे । हा । मुझे उसकी जवानी पर भी तरस न आया, मेरा लाल मेरे ही हाथो मैं अपने जवान बेटे को अपने ही हाथो हा भगवान् । अब यह दुख नही सही जाता । फाँसी अभी न जाने कब होगी । कौन जाने कहीं सबके साथ मेरा भी डामिल हो जाय, तब तो मरते दम तक इन लोगों के जले-कटे वचन सुनने पड़ेंगे । वलराज, तुझे कैसे बचाऊँ ? कौन जाने हाकिम यही फैसला करे कि यह जवान है, इसी ने कुल्हाडा मारा होगा । हा भगवान् ! तब क्या होगा ? क्या अपनी ही आँखो से यह देखूँगा ? नहीं, ऐसे जीने में मरना ही अच्छा है। नकटा जिया बुरे हवाल । बम, एक ही उपाय है--हाँ ।



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फैजुल्लाह खाँ का गौस खाँ के पद पर नियुक्त होना गाँव के दुखियारो के घाव पर नमक छिड़कना था। पहले ही दिन में खीच-तान होने लगी और फैजू ने विरोधाग्नि को शान्त करने की कोई जरूरत न समझी । अब वह मुसल्लम गाँव के सत्तावारी शासक थे। उनका हुक्म कानून के तुल्य था । किसी को चूँ करने की मजाल न थी । गाँव का दूध, घी, उपले-लकडी, घाम-पयाल, कद्दू-कुम्हडे, हल-बैल सब उनके थे। जो अधिकार गौम खाँ को जीवन-पर्यन्त न प्राप्त हुए वह समय के उलट-फेर और सौभाग्य से फैजुल्लाह को पहले ही दिन से प्राप्त हो गये । अन्याय और स्वेच्छा के मैदान मे अब उनके घोडो को किसी ठोकर का भय न था। पहले कर्तारसिह की ओर से कुछ शंका थी, किन्तु उनकी नीति-कुशलता ने शीघ्र ही उसकी अभक्ति को परास्त कर दिया। वह अब उनका अज्ञाकारी सेवक, उनका परम शुभेच्छु था । वह अब गला फाड-फाड कर रामायण का पाठ करता । सारे गाँव के ईट-पत्थर जमा करके चौपाल के सामने ढेर लगा दिये और उन पर घडो पानी चढाता। घटों चन्दन रगड़ता, घटो भग घोटता, कोई रोक-टोक करनेवाला न था । फैजुल्लाह खाँ नित्य प्रात काल टाँधन पर सवार हो कर गाँव का चक्कर लगाते, कर्तार और विन्दा महाराज लट्ठ लिये उनके पीछे-पीछे चलते । जो कुछ नीचे-खसोटे मिल जाता वह ले कर लौट आते थे । यो तो समस्त गाँव उनके अत्याचार में पीडित था, पर मनोहर के घर पर इन लोगों की विशेष कृपा थी । पूस में ही विलासी पर बकाया लगान की नालिश हुई और उसके सब जानवर कुर्क हो गये । फैजू को पूरा विश्वास था कि अब की चैत में किसी से मालगुजारी वसूल तो होगी नही, सभी पर वेदखली के दाबे कर दूँगा और एक ही हल्ले में सबको समेट लूँगा । मुसल्लम गाँव को बेदखल कर दूँगा, आमदनी चटपट दूनी हो जायगी । पर इस दुप्कल्पना से उन्हें सन्तोष न होता था। डाँट-फटकार, गाली-गलौज के बिना रोब जमाना कठिन