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प्रेमाश्रम

था। अतएव नियमपूर्वक इस नीति का सदुपयोग किया जाने लगा । विलासी मारे डर के घर में से निकलती ही न थी। उसकी रब्बी खेत में खडी सूख रही थी, पानी कौन दे ? न बैल अपने थे और न किसी से माँगने का ही मुँह था।

एक दिन सन्ध्या समय विलासी अपने द्वार पर बैठी रो रही थी। यही उसको मालूम था। मनोहर की आत्म-हत्या की खबर उसे कई दिन पहले मिल चुकी थी। उसे अपने सर्वनाश का इतना शौक न था जितना इस बात का कि कोई उसकी बात पूछनेवाला न था । जिसे देखिए उसे जली-कटी सुनाता था। न कोई उसके घर आता, न जाता । यदि वह बैठे-बैठे उकता कर किसी के घर चली जाती, तो वहाँ भी उसका अपमान किया जाता । वह गाँव की नागिन समझी जाती थी, जिसके विष ने समस्त गाँव को काल का ग्रास बना दिया । और तो और उसकी वह भी उसे ताने देती थी । सहसा उसने सुना सुक्खू चौधरी अपने मन्दिर में आ कर बैठे हैं। वह तुरन्त मन्दिर की ओर चली । वह सहानुभूति की प्यासी थी । सुक्खू इन घटनाओं के विषय में क्या कहते हैं, यह जानने की उसे उत्कट इच्छा थी। उसे आशा थी कि सुक्खू अवश्य निष्पक्ष भाव से अपनी सम्मति प्रकट करेगें । जब वह मन्दिर के निकट पहुँची तो गाँव की कितनी ही नारियों और बालिकाओं को वहाँ जमा पाया । सुक्खू की दाढी बढी हुई थी, सिर पर एक कन्टोप था और शरीर पर एक रामनामी चादर । बहुत उदास और दुखी जान पडते थे । नारियाँ उनसे गौस खाँ की हत्या की चर्चा कर रही थी। मनोहर की खूब ले-दे हो रही थीं। विलासी मन्दिर के निकट पहुँच कर ठिठक गयी कि इतने में सुक्खू ने उसे देखा और बोले, आओ विलासी आओ बैठो। मैं तो तुम्हारे पास आप ही आनेवाला था।

विलासी--तुम तो कुशल से रहे ?

सुक्खू--जीता हूँ, बस यही कुशल है। जेल से छूटा तो बद्रीनाथ चला गया ! वहाँ से जगन्नाथ होता हुआ चला आता हूँ । बद्रीनाथ में एक महात्मा के दर्शन हो गये, उनसे गुरुमन्त्र भी ले लिया । अब माँगता खाता फिरता हैं। गृहस्थी के जजाल से छूट गया।

विलासी ने डरते-डरते पूछा, यहाँ का हाल तो तुमने सुना ही होगा।

सुक्खू--हाँ, जब से आया हूँ वही चर्चा हो रही है और उसे सुन कर मुझे तुमपर ऐसी श्रद्धा हो गयी है कि तुम्हारी पूजा करने को जी चाहता है। तुम क्षत्राणी हो, अहीर की कन्या हो कर भी अत्राणी हो । तुमने वही किया जो क्षेत्राणियाँ किया करती हैं। मनोहर भी क्षत्री हैं, उसने वही किया जो क्षत्री करते है। वह वीर आत्मा था। इस मन्दिर मे अब उसकी समाधि बनेगी और उसकी पूजा होगी। इसमें अभी तक किसी देवता को स्थापना नहीं हुई है, अब उसी वीर-मूर्ति की स्थापना होगी। उसने गाँव की लाज रख ली, स्त्री की मजदि रख ली । यह सब क्षुद्र आत्माएँ बैठी उसे बुरा-भला कह रही हैं। कहती हैं, उसने गाँव का सर्वनाश कर दिया। इनमे लज्जा नहीं हैं, अपनी मर्यादा का कुछ गौरव नही है। उसने गाँव का सर्वनाश नहीं किया, उसे वीर-गति दे दी, उसका उद्धार कर दिया । नारियों की रक्षा करना पुरुषो का धर्म हैं। मनोहर ने