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प्रेमाश्रम

अपने धर्म का पालन किया । उसको बुरा वही कह सकता है जिसकी आत्मा मर गयी है, जो बेहया हो गया है। गाँव के दस-पाँच पुरुष फाँसी चढ़ जाये तो कोई चिन्ता नहीं यहाँ एक-एक स्त्री के पीछे लाखो सिर कट गये है। सीता के पीछे रावण का राज्य विध्वश हो गया। द्रौपदी के पीछे १८ लाख योधा मर मिटे । इज्जत के लिए दस-पाँच जाने चली जायँ तो क्या बड़ी बात है ! धन्य है मनोहर, तेरे साहस को, तेरे पराक्रम को, तेरे कलेजे को ।

सुक्खू का एक एक शब्द वीर रस में डूबा हुआ था। विलासी के हृदय में वह गुदगुदी हो रही थीं, जो अपनी सराहना सुन कर हो सकती है। जी चाहता था, सुक्खू के चरणों पर सिर रख दूँ, किन्तु अन्य स्त्रियाँ सुक्खू की ओर कुतूहल से ताक रही थी कि यह क्या बकता है।

एक क्षण के बाद सुक्खू ने विलासी से पूछा, खेती-बारी का क्या हाल है?

बिलासी के खेत सूख रहे थे, पर अपनी विपत्ति-कथा सुना कर वह सुक्खू को दुखी नहीं करना चाहती थी । बोली, दादा, तुम्हारी दया से खेती अच्छी हो गयी है, कोई चिन्ता नहीं है।

कई और साधु आ गये, जो सुक्खू के साथ जान पडते थे। उन्होने धूनी जलायी और चरस के दम लगाने शुरू किये । गाँव के लोग भी एक-एक करके वहाँ से चलने लगे । जब बिलासी जाने लगी तो सुक्खू ने कहा, बिलासी, मैं पहररात रहे यहाँ से चला जाऊँगा, घूमता-घामता कई महीनो मे आऊँगा । तब यहाँ मूर्ति की स्थापना होगी। हम उस यज्ञ के लिए भीख माँग कर रुपए जमा करते है। तुम्हे किसी बात की तकलीफ हो तो कहो ।

विलासी--नही दादा, तुम्हारी दया से कोई तकलीफ नही है ।

सुक्खू तो प्रात काल चले गये, पर बिलासी पर उनकी भावनापूर्ण बातो का गहरा असर पड़ा। अब वह किसी दलित दीन की भाँति गाँववालो के व्यग और लाछन न सुनती और न किसी को उसपर उतनी निर्भयता से आक्षेप करने का साहस ही होता था। इतना ही नही, बिलासी की बातचीत, चाल-ढाल से अब आत्म-गौरव टपका पड़ता था। कभी-कभी वह बढ कर बातें करने लगती, पड़ोसियों से कहती--तुम अपनी लाज बेच कर अपनी चमडी को बचाओ, यहाँ इज्जत के पीछे जान तक दे देते है। मैं विधवा हो गयी तो क्या, घर सत्यानाश हुआ तो क्या, किसी के सामने आँख तो नीची नहीं हुई। अपनी लाज तो रक्खीं। पति की मृत्यू और पुत्र का वियोग अब उतना असह्य न था।

एक दिन उसने इतनी डीग मारी कि उसकी बहू से न रहा गया। चिढ़ कर बोली--अम्माँ, ऐसी बातें करके घाव पर नमक न छिडको । तुम सब सुख-विलास कर चुकी हो, अब विधवा ही हो गयी तो क्या ? उन दुखियारियो से पूछो जिनकी अभी पहाड-सी उमर पडी है, जिन्होंने अभी जिन्दगी का कुछ सुख नही जाना है। अपनी मरजाद सबको प्यारी होती है, पर उसके लिए जनम भर का रँडापा सहना कठिन है। तुम्हे