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प्रेमाश्रम

है। खाँ साहब गये तो क्या, गाँव साफ हो गया । कोई दाखिलकार असामी रहेगा ही नही, जितनी चाहे जमीन की दर बढा सकते हैं। हजार की जगह दो हजार वसूल होगे । इस कारगुजारी का सेहरा मेरे सिर बँधेगा । दूर-दूर तक मेरी धूम हो जायगी। इन कल्पनाओं से फैजू मियाँ फूले नहीं समाते थे।

निदान फैसले की तारीख आ गयी । कर्तारसिंह ने मलमल का ढीला कुरता और गुलाबी पगडी निकाली, जूते मे कड़वा तेल भरा, लांठी मे तेल मला, बाल बनबाये और माथे पर भभूत लगायी । फैजुल्लाह खाँ ने चारजामे की मरम्मत करायी, अपनी काली अचकन और सफेद पगडी निकाली। बिन्दा महाराज ने भी धूली हुई गाढ़ की मिर्जई और गेरू में रँगी हुई धोती पहनी । वेगारों के सिरो पर कम्बल, टाट आदि लादे गये और तीनो आदमी कचहरी चलने को तैयार हुए। केवल खाँ साहब की नमाज की देर थी ।

किन्तु गाँव मे जरा भी हलचल न थी । मर्दो मे कादिर के छोटे लडके के सिवा और सभी नीच जातियों के लोग थे, जिन्हें मान-अपमान का ज्ञान ही न था; और वह बेचारा कानूनी बातो से अनभिज्ञ था । झपट के दिल में ऐसा हौल समाया हुआ था कि घर से बाहर ही न निकलते थे। रही स्त्रियाँ, वे दीन अवलाएँ कानून का मर्म क्या जाने । आज भी नियमानुसार उनके दोनो अखाड़े जमा हुए थे । बूढियाँ कहती थी, खेत निकल जाये, हमारी बला से, हमें क्या करना है? आज मरे, कल दूसरा दिन । रहे भी तो हमारे किस काम आयेंगे ? इन रानियो का घमड तो चूर हो जायगा । यहाँ तक की विलासी भी जो इस सारी विपत्ति-कथा की कैकेयी थी, आज निश्चिन्त बैठी हुई थी। विपक्षी दल को आज सन्धि-प्रार्थना की इच्छा हो रही थी, लेकिन कुछ तो अभिमान और कुछ प्रार्थना की स्वीकृति की निराशा इच्छा को व्यक्त न होने देती थी।

आठ बजे खाँ साहब की नमाज पूरी हुई । इधर बिन्दा महाराज ने चवेना खा कर तम्बाकू फॉका और कर्तारसिह नै घोडे को लाने का हुक्म दिया कि इतने में सुक्खू चौधरी सामने से आते दिखायी दिये। वहीं पहले का-सा वेश था, सिर पर कन्टोप, ललाट पर चन्दन, गले में चादर, हाथ में एक चिमटा । आ कर चौपाल मे जमीन पर बैठ गये । गाँव के लडके जो उनके साथ दौडने आये थे बाहर ही रुक गये । फैजू ने पूछा, चौधरी कहो, खैरियत से तो रहे ? तुम्हे जेल से निकले कितना अरसा हुआ ?

चौधरी ने कर्तार से चिलम ली, एक लम्बा दम लगाया और मुँह से धुएँ को निकालने हुए बोले, आज बेदखली की तारीख हैं न ?

कर्तार--कागद-पत्तर देखा जाय तो जान पड़े । यहाँ नित एक न एक मामला लगा ही रहता है । कहाँ तक कोई याद रखे ।

चौधरी--बेचारो पर एक विपत्ति तो थी ही, यह एक और बला सवार हो गयी ।

फैजू--मैं मजबूर हो गया । क्या करता ? जाले और कानून से बँधा हुआ हैं।