पृष्ठ:प्रेमाश्रम.pdf/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४३
प्रेमाश्रम

गिर पड़ी। वह हाथ बाँधकर बड़े भक्ति भाव से चौधरी के पैरों पर गिर पड़ा और बोलो, बाबा मेरा अपराध क्षमा कीजिए, मैं अधम, पापी, दुष्ट हूँ; मेरा उद्धार कीजिए। मैं अब आपकी ही सेवा में रहूँगा, मुझे इस लोभ के गड्ढे से निकालिए ।

चौधरी--दीनो पर दया करो और वही पुण्य तुम्हे गड्ढे से निकालेगा। दया ही सब मन्त्रो का मूल है।

फैजू मियाँ गर्द झाड़ कर उठ बैठे थे । वृद्ध दुर्वल चौधरी उस समय उनकी आँखों मे एक देव सा दीख पड़ता था। यह चमत्कार देख कर वह भी दग रह गये । अपनी खता माफ कराने लगे---बाबा जी क्या करें । जजाल में फँस कर सभी कुछ करना पडता हैं। अहलकार, अमले, अफसर, अर्दली, चपरासी सभी की खातिर करनी पड़ती है। अगर यह चाले न चले तो उनका पेट कैसे भरे ? वहाँ एक दिन भी निबाह न हो । अब मुझे भी गुलामी में कबूल कीजिए।

कर्तार ने चिलम पर चरस रख कर चौधरी को दी। बिन्दा महाराज का समय भी मिट चुका था | बोले, कुछ जलपान की इच्छा हो तो शर्बत बनाऊँ। फैजुल्लाह ने उनके बैठने को अपना कालीन बिछा दिया । चौधरी प्रसन्न हो गये । अपनी झोली से एक जडी निकाल कर दी और कहा, यह मिर्गी की आजमायी हुई दवा हैं। जनम की मिर्गी भी इससे जाती रहती है। इसे हिफाजत से रखना और देखो, आज ही मुकदमा उठा लेना। यह एक हजार के नोट हैं, गिन लो। सब असामियों को अलग-अलग बाकी की रसीद दे देना । अब मैं जाता हूँ । कुछ दिनो मे फिर आऊँगा ।



३७

प्रात काल ज्यों ही मनोहर की आत्म-हत्या का समाचार विदित हुआ, जेल में हाहाकार मच गया। जेल के दारोगा, अमले, सिपाही, पहरेदार--सब के हाथो के तोते उड गये । जरा देर में पुलिस को खबर मिली, तुरन्त छोटे-बड़े अधिकारियों का दल आ पहुँचा। मौके की जाँच होने लगी, जेल कर्मचारियों के वयान लिखे जाने लगे। एक घटे में सिविल सर्जन और डाक्टर प्रियनाथ भी आ गये। फिर मजिस्ट्रेट, कमिश्नर और सिटी मजिस्ट्रेट का आगमन हुआ। दिन भर तहकीकात होती रही। दूसरे दिन भी यही जमघट रहा और यही कार्यवाही होती रही, लेकिन मॉप मर चुका था, उसकी बाँबी को लाठी से पीटना व्यर्थ था। हाँ, जेल-कर्मचारियों पर बन आयी, जेल दारोगा ६ महीने के लिए मुअत्तल कर दिये गये, रक्षकों पर कडे जुर्माने हुए । जेल के नियमो में सुधार किया गया, खिडकियो पर दोहरी छडे लगा दी गयी । शेष अभियुक्तो के हाथो में हथकडियाँ न डाली गयी थी, अब दोहरी हथकडियों डाल दी गयीं । प्रेमशकर यह खबर पाते ही दौडे हुए जेल आये; पर अधिकारियों ने उन्हें फाटक के सामने से ही भगा दिया। अब तक जेल-कर्मचारियों ने उनके साथ सब प्रकार की रियायत की थी। अभियुक्तो से उनकी मुलाकात करा देते थे, उनके यहाँ