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प्रेमाश्रम

आज से तीन साल पहले वह अलग हो गये होते तो आज हमारी दशा ऐसी खराब न होती। चचा के सिर जो पड़ती उसे झेलते, खाते चाहे उपवास करते, हमसे तो कोई मतलब न रहता बल्कि उस दशा में हम उनकी कुछ सहायता करने तो वह इसे ऋण समझते, नहीं तो आज झाड़-लीप कर हाथ काला करने के सिवा और क्या मिला? प्रभाशंकर दुनिया देखे हुए थे। भतीजे का यह भाव देख कर दबते थे, अनुचित बातें सुन कर भी अनसुनी कर जाते। दयाशंकर उनकी कुछ सहायता करने के बदले उलटे उन्हीं के सामने हाथ फैलाते रहते थे, इसलिए दब कर रहने में ही उनका कल्याण था।

ज्ञानशंकर दम्भ और द्वेष के आवेग में बहने लगे। एक नौकर चचा का काम करता तो दूसरे को खामखाह अपने किसी न किसी काम में उलझा रखते। इसी फेर में पड़े रहते कि चचा के आठ प्राणियों पर जितना व्यय होता है उतना मेरे तीन प्राणियों पर हो। भोजन करने जाते तो बहुत-सा खाना जूठा करके छोड़ देते। इतने पर भी संतोष न हुयी तो ये कुत्ते पाले। उन्हें साथ बैठा कर खिलाते। यहां तक कि प्रभाशंकर डाक्टर के यहाँ से कोई दवा लाते तो आप भी उतने ही मूल्य की औषधि अवश्य लाते, चाहे उसे फेंक ही क्यों न दे। इतने अन्याय पर भी चित्त को शान्ति न होती थी। चाहते थे कि महिलाओं में भी बमचख मचे। विद्या की शालीनता उन्हें नागवार मालूम होती, उसे समझाते कि तुम्हें अपने भले-बुरे की जरा भी परवा नहीं। मरद को इतना अवकाश कहीं कि जरा-जरा-सी बात पर ध्यान रखे। यह स्त्रियों का खास काम है, यहाँ तक कि इसी कारण उन्हें घर में आग लगाने का दोष लगाया जाता है, लेकिन तुम्हे किसी बात की सुधि ही नहीं रहती। आँखों से देखती हो कि घी घड़ा लुढका जाना है, पर जबान नहीं हिलती। विद्यावती यह शिक्षा पा कर भी उसे ग्रहण न करती थी।

इसी बीच में एक ऐसी घटना हो गयी, जिसने इस विरोधाग्नि को और भी भड़का दिया। दयाशंकर यों तो पहले से ही अपने थाने में अन्धेर मचाये हुए थे, लेकिन जब से ज्वालासिंह उनके इलाके के मैजिस्ट्रेट हो गये थे तब से तो वह पूरे बादशाह बन बैठे थे। उन्हें यह मालूम ही था कि डिप्टी साद ज्ञानशंकर के मित्र है। इतना सहारा मेलजोल पैदा करने के लिए काफी था। कभी उनके पास चिड़िया भेजते, कभी मछलियों, कभी दूध-घी। स्वयं उनसे मिलने जाने तो मित्रवत् व्यवहार करते। इधर सम्मान बढ़ा तो भय कम हुआ, इलाके को लूटने लगे। ज्वालासिंह के पास शिकायत पहुँची, लेकिन वह लिहाज के मारे न तो दयाशंकर से और न उनके घरवालों से ही इनकी चर्चा कर सके। लोगों ने जब देखा कि डिप्टी साहब भी हमारी फरियाद नहीं सुनते तो हार मान कर चुप हो बैठे। दयाशंकर और भी शेर हुए। पहले दांव-घात देख कर हाथ चलाते थे, अब नि शक हो गये। यहाँ तक कि प्याला लवालब हो गया। इलाके मैं एक भारी डाका पड़ा। वह उसकी तहकीकात करने गये। एक जमींदार पर संदेह हुआ, तुरंत उसके घर की तलाशी लेनी शुरू की, चोरी का कुछ माल बरामद हो गया। फिर क्या था, उसी दम उसे हिरासत में ले लिया। जमींदार ने कुछ दे-दिला कर बला टालीं। पर अभिमानी मनुष्य था, यह अपमान न सहा गया। उसने दूमरे दिन ज्वाला-