देती हूँ, तिसपर भी भरपेट दाना नसीब नहीं होता । आप उसके हाथ में तलब न दिया करे । सब जुए मे उडा देता है। आप उसे न डाँटते हैं, न समझाते है । आप समझते है कि मजदूरी बढ़ाते हीं वह ठीक हो जायगा । आप उसे हजार का महीना भी दे तो भी उसके लिए पूरे न पडेगे । आज से आप तलब मेरे हाथ मे दिया करें ।
प्रेमशकर--जुआ खेलना तो उसने छोड दिया था ?
बुधिया--वही दो-एक महीने नही खेला था। बीच-बीच मे भी कभी छोड़ देता है, लेकिन उसकी तो लत पड गयी है ! आप तलब मुझे दे दिया करे, फिर देखूँ कैसे जुआ खेलता है। आपका सीधा सुभाव है, जब माँगता है तभी निकाल कर दें देते हैं।
प्रेम--मुझसे तो वह यही कहता है कि मैंने जुआ छोड़ दिया। जब कभी रुपये माँगता है, तो यही कहता है कि खाने को नही है । न दूँ तो क्या करूँ ?
बुधिया--तभी तो उसके मिजाज नहीं मिलते । कुछ पेशगी तो नहीं ले गया है ?
प्रेम--उसी से पूछो, ले गया होगा तो बतायेगा न ।
बुधिया--आपके यहाँ हिसाब-किताब नहीं है क्या ?
प्रेम--मुझे कुछ याद नहीं है।
बुधिया--आपको याद नहीं हैं तो वह बता चुका । शराबियो-जुआरियो के भी कही ईमान होता है ?
प्रेम–-क्यो, क्या शराब से ईमान घुल जाता है ?
बुधिया--धुल नही जाता तो और क्या ? देखिए, बुलाके आपके मुँह पर पूछती हूँ। या नारायण, निगोडा तलब की तलब उडा देता है, उसपर पेशगी ले कर खेल डालता है । अब देखूँ, कहाँ से भरता है ?
यह कह कर वह झल्लायी हुई गयी और जरा देर में भोला को साथ लिये आयी। भोला की आँखे लाल थी । लज्जा से सिर झुकाये हुए था। बुधिया ने पूछा, बताओ, तुमने बाबू जी से कितने रुपये पेशगी लिये है ?
भोला ने स्त्री की ओर सरोष नेत्रों से देख कर कहा--तू कौन होती है पूछने वाली ? बाबू जी जानते नही क्या ?
बुधिया--बाबू जी ही तो पूछते हैं, नहीं तो मुझे क्या पडी थी ?
भोला--इनके मेरे ऊपर लाख आते है और मैं इनका जन्म भर का गुलाम हूँ।
बुधिया--देखा बाबू जी ! कहती न थीं, वह कुछ न बतायेगा ? जुआरी कभी ईमान के सच्चे हुए हैं कि यही होगा ?
भोला--तू समझती है कि मैं बाते बना रहा हूँ। बाते उनसे बनायी जाती है जो दिल के खोटे होते हैं, जो एक घेला दे कर पैसे का काम कराना चाहते है। देवताओं से बात नही बनायी जाती। यह जान इनकी है, यह तम इनका है, इशारा भर मिल जाये।
बुधिया--अरे जा, जालिये कही के ! बाबू जी बीसो बार समझा के हार गये ।