पृष्ठ:प्रेमाश्रम.pdf/२४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४९
प्रेमाश्रम

घंटे तक दफ्तरवालों से बात करते रहे। अन्त में निकले तो बड़े सोच भाव से बोले आप को यहाँ खड़े-खड़े बेहद तकलीफ हुई, मुआफ फरमाइएगा। मुझे यह कहते हुए आपसे बहुत नादिम होना पड़ता है कि मैं तीन-चार दिन इस मुकदमे की पैरवी न कर सकूँगा।

प्रेम-यह तो आप ने बुरी खबर सुनायी। आप खुद अन्दाज कर सकते है कि ऐसे नाजुक मौके पर आप को न रहना कितना जुल्म है।

डाक्टर—मजबूर हूँ, आप के भाई साहब ने तार से गोरखपुर बुलाया है।

प्रेम—इस खबर से मेरी तो रूह ही फना हो गयी। आप इन बेचारे किसानों को मझधार में छोड़ देते हैं। ख्याल फरमाइए, इनवी क्या हालत होगी। यह इतने तंग वक्त में कोई दूसरा वकील भी तो नहीं मिल सकता।

डाक्टर—मुझे खुद निहायत अफसोस है। मगर जब तक दुकान हैं तब तक खरीदारों की खातिर करनी ही पड़ेगी। यह पेशा एसा मनहूस हैं कि इसमें आईन पर कायम रहना दुश्वार हैं। मुझे इन मुसीबतजदो का खुद ख्याल है, लेकिन मिस्टर ज्ञानशंकर को नाराज भी तो नहीं कर सकता। और जनाब, माफ साफ तो यह है कि जब काफिर हुए तो शराब से क्यों तोबा करे? जब वकालत का सियाह जामा पहना तो उसपर शराफत का सुफेद दागे क्यों लगाये ?जब लूटने पर आये तो दोनों हाथों से क्यों न समेटे? दिल मे दौलत का अरमान क्यों रह जाय? बनियों को लोग ख्वाहमख्वाह लालची कहते है। इस लकब का हक हमको है। दौलत हमारा दीन है, हमारा ईमान है। यह न समझिए कि इस पेशे के जो लोग चोटी पर पहुँच गये हैं वे ज्यादा रोशन ख्याल है। नहीं जनाब, वे बगुले भगत हैं। ऐसे खामोश बैठे रहते है, गोया दुनिया से कोई वास्ता ही नहीं, लेकिन शिकार नजर आते ही आप उनकी झपट और फुरती देख कर दंग हो जायेंगे। जिस तरह कसाई बकरे को सिर्फ उसके वजन के एतबार से देखता है उसी तरह हम इन्सान को महज इस एतवार से देखते है कि वह कहाँ तक आँख का अन्धा और गाँठ का पूरा है। लोग इसे अजाद पेशा कहते है, मैं इसे इन्तही दरजे की गुलामी कहता हूँ। अभी चन्द महीने हुए मेरे भाई की शादी दरपेश थी। सादात के कस्बे में बारात गयी थी। तीन दिन बारात यहाँ मुकीम रही। मैं रोज सवेरे यहाँ चला आता था और रात की गाड़ी से लौट जाता था। सभी रस्मे मेरी गैरहाजिरी मे अदा हुई। एक दिन भी कचहरी का नागा नहीं किया। मैं अपनी इस हवस को मकरूह समझता हूँ और जिन्दगी भर उस आदमी का शुक्रगुजार रहूँगा जो मुझे इस मर्ज से नजात दे दे।

यह कह कर डाक्टर साहब मोटर पर आ बैठे और एक क्षण में घर पहुँच गये। एक बजे गाड़ी जाती थी। सफर का सामान होने लगा। दो चमड़े के सन्दूक, एक हैंड बैग, हैट रखने का सन्दुक, आफिस बक्स, भोजन सामग्रियों का सन्दुक आदि सभी सामान बग्घी पर लादा गया। प्रत्येक वस्तु पर डाक्टर साहब का नाम लिखा हुआ था। समय बहुत कम था, डाक्टर साहब घर में न गये। मोटर पर बैठना ही चाहते थे कि