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प्रेमाश्रम

इस जाल में फंस कर तरह तरह की चाले चलता हूँ, तरह-तरह के स्वाँग भरता हैं, फिर भी चूल नहीं बैठती। अब ताकीद कर दूंगा कि जो कुछ पके वह आपको जरूर मिले। देखिए, अब कोई असर न आने पाये।

अमजद-मैंने तो कसम खा ली है।

ईनाद-अरे मियाँ कैसी बातें करते हो? ऐसी कस्मे दिन मे सैकड़ो बगर खाया करते हैं। जाइए देखिए, फिर कोई शैतान आया है।

मियाँ अमजद नीचें आये तो सचमुच एक शैतान खडा था। ठिगना कद, उग्र हुआ शरीर, श्याम वर्ण, तर्जव का नीचा कुरता पहने हुए। अमजद को देखते ही बोला मिर्जा जी से कह दो वफातीं आया है।

अमजद ने कड़क कर कहा–मिर्जा साहब कहीं बाहर तशरीफ ले गये हैं।

वफाती—मियां, क्यों झूठ बोलते हो? अभी गोपालदास का आदमी मिला था। कहता था ऊपरे कमरे में बैठे हुए हैं। इतनी जल्दी क्या उठ कर चले गये?

अमजद-उसने तुम्हे झांसा दिया होगा। मिर्जा साहब कल से ही नहीं है।

वफाती-तो मैं जरा ऊपर जा कर देख ही न आऊँ।

अमजद---ऊपर जाने का हुक्म नहीं है। बेमात बैठी होगी। यह कह कर बे जीने का द्वार रोक कर खड़े हो गये। वफाती ने उनका हाथ पकड़ कर अपनी और घसीट लिया और जीने पर चढ़ा। अमजद ने पीछे से उनको पकड़ लिया। वफाती ने झल्ला कर ऐसा झोका दिया कि मियाँ अमजद गिरे और लुढकते हुए नीचे आ गये। लौडों ने जोर से कहकहा मारा। वफाती ने ऊपर जा कर देखा तो मिर्जा साहब साक्षात् मसनद लगाये विराजमान हैं। बोला, वाह मिर्जा जी वाह, आफ्का निराला हाल है कि घर में बैठे रहते हैं और नीचे मियों अमजद कहते हैं, बाहर गये हुए हैं। अव भी दाम दीजिएगा या हशर के दिन ही हिसाब होगा? दौड़ते-दौड़ते तो पैरों मे छाले पड़ गये।

मिर्जी आह, इससे बेहतर क्या होगा। हश्र के दिन तुम्हारा कौड़ी-कौड़ी चुका हूँगा उस वक्त जिन्दगी भर की कमाई पास रहेगी, कोई दिक्कत न होगी।

वफाती-लाइए-लाइए, आज दिलवाइए, बरसो हो गये। आप यतीमखाने के नाम पर चारो तरफ से हजारों रुपये लाते हैं, मेरा क्यों नहीं देते है।

मिर्जा–मिरी, कैसी बातें करते हो? दुनिया ने ऐसी अन्धी है, न ऐसी अहमक। अद लोगों के दिल पत्थर हो गये हैं। कोई पसीजता नहीं। अगर इस तरह रुपये बरसते तो तकाजो मे ऐसा क्या मजा है जो उठाया करता? यह अपनी बेवसी है जो तुम लोगों से नादिम कराती है। खुदा के लिये एक माह और सब्र करो। दिसम्बर का महीना आने दो। जिस तरह क्वार और कातिक हकीमों के फस्ल के दिन होते है, उसी तरह दिसम्बर में हमारी भी फस्ल तैयार होती हैं। हर एक शहर मे जलसे होने लगते हैं। अबकी मैंने वह मन्त्र जगाया है जो कभी खाली जा ही नहीं सकता।

वफात-इस तरह हीला-हवाला करते तो आपको बरसो हो गये। अजि कुछ न कुछ पिछले हिसाब में तो दे दीजिए।