पृष्ठ:प्रेमाश्रम.pdf/२५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६०
प्रेमाश्रम

उसी बेगाना कौम का एक फर्द हकीर आज आपकी खिदमत मे इत्तहाद का पैगाम लेकर हाजिर हुआ है, उसकी अर्ज कबूल कीजिए। यह फकीर इत्तहाद का सौदाई है। इत्तहाद का दीवाना है, उसका हौसला बढ़ाइए। इत्तहाद का यह नन्हा-सा भुक्षया हुआ पौध' आपकी तरफ भूखी-प्यासी आँखो से ताक रहा है। उसे अपनी दरियादिली के उबलते हुए चश्मों से सैराब कर दीजिए। तब आप देखेंगे कि यह पौधा कितनी जल्द तनावर दरख्त हो जाता है और उसके मीठे फलों से कितनी की जबाने, तर होती हैं। हमारे दिल में बड़े-बड़े हौसले है। बड़े-बड़े मनसूबे है। हम इत्तहाद की सदा से इस पाक जमीन के एक-एक गोशे को भर देना चाहते है। अब तक जो कुछ किया है आप ही ने किया है, आइन्दा जो कुछ करेंगे आप ही करेंगे। चन्दे की फिहरिस्त देखिए, वह आपके ही नामों से भरी हुई है और हक पूछिए तो आप ही उसके बानी हैं। रानी गायत्री कुँवर साहिबा की सखावत की इस वक्त सारी दुनिया में शोहरत है। भगत ज्ञानशंकर की कौमपरस्ती क्या पोशीदा है? वजीर ऐसा, बादशाह ऐसा? ऐसी पाक रूहे जिस कौम में हो वह खुशनसीब है। आज जब मैंने इस शहर की पाक जमीन पर कदम रखा तो बाशिन्दो के एखलाक और मुरौबत, मेहमाननवाजी और खातिर दारी ने मुझे हैरत में डाल दिया। तहकीकात करने से मालूम हुआ कि यह इसी मजहवी जोश की बरकत है। यह प्रेम के औतार सिरी किरिइन की भगती का असर है। जिसनें लोगों को इन्सानियत के दर्जे से उठा कर फरिश्तो का हमसर बना दिया है। हुजरात, मैं अर्ज नहीं कर सकता कि मेरे दिल में सिरी किरिश्न जी की कितनी इज्जत है। इससे चाहे मेरी मुसलमानी पर ताने ही क्यों न दिये जायें, पर मैं बेखौफ कहता हूँ कि वह रूहे पाक उलूहियत (ईश्वरत्व) के उस दर्जे पर पहुँची हुई थी जहाँ तक किसी नबी या पैगम्बर को पहुँचना नसीब न हुआ। आज इस सभा में मैं सच्चे दिल से अजुमन इत्तहाद को उसी रूपाक के नाम मानूम (समर्पित) करता हूँ। मुझे उम्मीद ही नहीं, यकीन है कि उनके भगतो के सामने मेरा सवाल खाली न जायगा। इत्तहादी यतीमखाने के बच्चे और बच्चियाँ आप ही की तरफ वैकस निगाहों से देख रही हैं। यह कौमी भिखारी आपके दरवाजे पर खडा दुआएँ दे रहा है। इस लम्बी दाडों पर निगाह डालिए, इन सुफेद बालों की लाज रखिए।'

फिर हारमोनियम बजा, तबले पर थाप पड़ी, करताल ने झकार ली और ईजाद हुसैन की करुण-रस-पूर्ण गजल शुरू हुई। श्रोताओं के कलेजे मसोस उठे। चन्दे की अपील हुई तो रानी गायत्री की ओर से १००० रु० की सूचना हुई, भक्त ज्ञानशंकर ने यतीमखाने के लिए एक गाय भेंट की, चारो तरफ से लोग चन्दा देने को लपके। इधर तो चन्दे की सूची चक्कर लगा रही थी, उधर इर्शाद हुसेन ने अजुमन के पैम्फलेट और तमगे बेचने शुरू किये। तमगे अतीव सुन्दर बने हुए थे। लोगों ने शौक से हाथों-हाथ लिये। एक क्षण में हजारों वक्षस्थलों पर यह तमगे चमकने लगे। हृदयों पर दोनों तरफ से इत्तहाद की छाप पड़ गयीं। कुल चन्दे का योग ५००० रु० हुआ। ईजाद हुसेन