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प्रेमाश्रम

करूंगा। यदि इससे तुम्हारे सुख-स्वप्न नष्ट होते है तो हो, मैं इसकी परवाह नहीं करता। यह मुमकिन नहीं कि सारे संसार में इस कान्फ्रेंस की सूचना देने के बाद अब मैं उसे स्थगित कर दें। मेरी सारी जायदाद बिक जाय तो भी मैंने जो काम उठाया हैं उसे अत तक पहुँचा कर छोड़ूँगा। मेरी समझ में नहीं आता कि तुम कृष्ण के ऐसे भक्त और त्याग तथा वैराग्य के ऐसे साधक हो कर माया-मोह मे इतने लिप्त क्यों हो? जिसने कृष्ण का दामन पकड़ा, प्रेम का आश्रय लिया, भक्ति की शरण गही, उसके लिए सांसारिक विभब क्या चीज है! तुम्हारी बातें सुन कर और तुम्हारे चित्त की यह वृत्ति देख कर मुझे संशय होता है कि तुमने वह रूप धरा है और प्रेम-भक्ति का स्वाद नहीं पाया। कृष्ण का अनुरागी कभी इतना संकीर्ण हृदय नहीं हो सकता। मुझे अब शंका हो रही है कि तुमने यह जाल कहीं सरल-हृदय गायत्री के लिए न फैलाया हो।

यह कह कर राय साहब ने ज्ञानशंकर को तीव्र नेत्रों से देखा। उनके संदेह का निशाना इतना ठीक बैठा था कि ज्ञानशंकर का हृदय काँप उठा। इस भ्रम की मुलोच्छेद करना परमावश्यक था। रायसाहब के मन में इसका जगह पाना अत्यन्त भयंकर था। इतना ही नहीं, इस भ्रम को दूर करने के लिए निर्भीकता की आवश्यकता थी। शिष्टाचार का समय न था। बोले, आपके मुख से स्वाँग और बहुरूप की लाछना सुन कर एक मसल याद आती है, लेकिन आप पर उसे घटित करना नहीं चाहता है जो प्राणी घर्म के नाम पर विषय-वासना और विष पाने को स्तुत्य समझता हो वह यदि दूसरो की धार्मिक वृत्ति को पाखड समझे तो क्षम्य है।

राय साहब ने ज्ञानशकर को फिर चुभती हुई दृष्टि से देखा और कड़ी आवाज से बोले, तुम्हे सच कहना होगा!

ज्ञानशंकर को ऐसा अनुभव हुआ मानो उनके हृदय पर से कोई पर्दा सा उठा जा रहा है। उनपर एक अर्द्ध विस्मृति की दशा छा गयी। हीन भाव से बोले- जी हाँ, सच कहूँगा।

राय तुमने यह जाल किसके लिए फैलाया है?

ज्ञान-गयित्री के लिए।

राय—तुम उससे क्या चाहते हो?

ज्ञान-उसकी सम्पत्ति और उसका प्रेम।

राय साहव खिलखिलाकर हँसे। ज्ञानशंकर को जान पड़ा, मैं कोई स्वप्न देखते देखते जाग उठा। उनके मुँह से जो बातें निकली थी, वह उन्हें याद थी। उनका कृत्रिम क्रोध शान्त हो गया था। उसकी जगह उस लज्जा और दीनता ने ले ली थी जो किसी अपराधी के चेहरे पर नजर आती है। वह समझ गये कि राय साहब ने मुझे अपने आत्मबल से वशीभूत करके मेरी दुष्कल्पना को स्वीकार कर लिया। इस समय वह उन्हें अत्यन्त भयावह रूप में देख पड़ते थे। उनके मन में अत्याचार का प्रत्याघात करने की घातक चेष्टा लहरें मार रही थी, पर इसके साथ ही उनपर एक विचित्र भय आच्छादित हो गया था। वह इस शैतान के सामने अपने को सर्वथा निर्बल और