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प्रेमाश्रम

अकस्मात् ज्ञानशंकर बाज की तरह झपटे और उसे जोर से धक्का दे कर कहा, तुमसे कहता हूँ कि यह किसी चीज की जरूरत नहीं है, बात क्यों नही सुनते महाराज हक्का-बक्का हो कर ज्ञानशंकर का मुंह ताकने लगा। ज्ञानशंकर इस समय उस संशक दशा में थे, जब कि मनुष्य पत्ते का सुद्धका सुन कर लाठी सँभाल लेता है। उन्हें अब राय साहब की चिन्ता न थी। उनके विचार मैं बह चिन्ता की उद्घाटक शक्ति से बाहर हो गये थे। वह अब अपनी जान की खैर मना रहे थे। सम्पूर्ण इच्छा शक्ति इस रहस्य को गुप्त रखने में व्यस्त हो रही थी।

यकायक भीतर से हार खुला और रायसाहब बाहर निकले। उनका मुखड़ा रक्तवर्ष हो रहा था। आँखें भी लाल थी। पसीने से तर थे मानो कोई लौहार भट्टी के सामने से उठ कर आया हो। दोनों थाल समेट कर एक जगह रख दिये गये थे। कटोरे भी साफ थे। सब भोजन एक अँगेठी में जल रहा था। अग्नि उन पदार्थों का रसास्वादन कर रही थी।

क्षण-मात्र में ज्ञानशंकर के विचारों ने पलटा खाया। जब तक उन्हें शंका थी कि राय साहब दम तोड़ रहे थे तब तक वह उनकी प्राण-रक्षा के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे। जब बाहर खड़े-खड़े निश्चय हो गया कि राय साहब के प्राणान्त हो गये तब वह अपनी जान की खैर मनाने लगे। अब उन्हें सामने देख कर क्रोध हो रहा था कि वह मर क्यों न गये। इतना तिरस्कार, इतना मानसिक कष्ट व्यर्थ सहना पड़ा। उनकी दशा इस समय उस थके-मदे हलवाहे की सी हो रही थी जिसके बैल खेत से द्वार पर आकर बिदक गये हो, दिन भर के कठिन परिश्रम के बाद सारी रात अंधेरे में बैंलो के पीछे दौड़ने की सम्भावना उसकी हिम्मत को तोड़े डालती हो।

राय साहब ने बाहर निकल कर कई बार जोर से साँस लीं मानो दम घुट रहा हो, सब काँपते हुए स्वर से बोले, मरा नहीं, लेकिन मरने से बदतर हो गया। यद्यपि मैंने विष को योग-क्रिया से निकाल दिया, लेकिन ऐसा मालूम हो रहा है कि मेरी धमनियों में रक्त की जगह कोई पिघली हुई धातु दौड़ रही है। वह दाह मुझे कुछ दिन में भस्म कर देगी। अब मुझे फिर पोलो और टेनिस खेलना नसीब न होगा। मेरे जीवन की अनन्त शोमा का अन्त हो गया। अब जीवन में वह आनन्द कहाँ, जो शौक और चिन्ता को तुच्छ समझता था। मैंने वाणी से तो तुम्हें क्षमा कर दिया है, लेकिन मेरी आत्मा तुम्हे क्षमा न करेगी। तुम मेरे लड़के हो, मैं तुम्हारे पिता के तुल्य हैं, लेकिन हम अब एक दूसरे का मुंह न देखेंगे। मैं जानता हूँ कि इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है, यह हमारे वर्तमान लोक-व्यवहार का दोष है; किन्तु यह जानकर भी हृदय को सन्तोष नहीं होता। यह सारी विडम्बना इसी जायदाद का फल है। इसी जायदाद के कारण इम और तुम एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हो। संसार में जिधर देखो ईर्षा और द्वेष आघात और अन्यत का साम्राज्य है। भाई भाई का बैरी, बाप बेटे को बैरी, पुरुप स्त्री का बैरी, इस जायदाद के लिए! इनके हाथों जितना अनर्थ हुआ, हो रहा हैं और होगा उसके देखने कहीं अच्छा है कि अधिकार की प्रथा ही मिटा