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प्रेमाश्रम

दी जाती। यही वह खेत है जहाँ छल और कपट के पौधे लहराते हैं, जिसके कारण संसार रणक्षेत्र बना हुआ है। इसी ने मानव जाति को पशुओ से भी नीचे गिरा दिया हैं।

यह कहते-कहते राय साहब की आँखे बन्द हो गयी। वह दीवार को सहारा लिए हुए दीवानखाने मे आये और फर्श पर गिर पड़े। ज्ञानशंकर भी पीछे-पीछे थे, मगर इतनी हिम्मत न पडती थी कि उन्हें सँभाल ले। नौकरों ने यह हालत देखी तो दौडे और उन्हें उठाकर कोच पर लिटा दिया। गुलाब और केवडे का जल छिड़कने लगे। कोई पखा झलने लगा, कोई डाक्टर के लिए दौडा। सारे घर में खलबली मच गयी। दीवानखाने में एक मेला सा लग गया। दस मिनट के बाद राय साहब ने ऑंखें खोलीं और सबको हट जाने का इशारा दिया। लेकिन जब ज्ञानशंकर भी औरो के साथ जाने लगे तो राय साहब ने उन्हें बैठने का संकेत किया और बोले, यह जायदाद नहीं है। इसे रियासत कहना भूल है। यह निरी दलाली है। इस भूमि पर मेरा क्या अधिकार है? मैंने इसे बाहुबल से नहीं लिया। नवाबो के जमाने में किसी सुवेदार ने इस इलाके की आमदनी वसूल करने के लिए मेरे दादा को नियुक्त किया था। मेरे पिता पर भी नवाबों की कृपा-दृष्टि बनी रहीं। इसके बाद अँगरेजो का जमाना आया और यह अधिकार पिता जी के हाथ से निकल गया। लेकिन राज-विद्रोह के समय पिता जी ने तन-मन से अँगरेजो की सहायता की। शान्ति स्थापित होने पर हमे वही पुराना अधिकार फिर मिल गया। यही इस रियासत की हकीकत है। हम केवल लगान वसूल करने के लिए रखे गये है। इसी दलाली के लिए हम एक दूसरे के खून से अपने हाथ रंगते हैं। इसी दीन-हत्या को हम रोब कहते हैं। इसी कारिन्दगिरी पर हम फूले नही समाते। सरकार अपना मतलब निकालने के लिए हमे इस इलाके का मालिक कहती है, लेकिन जब साल में दो बार हमसे मालगुजारी वसूल की जाती है तब हम मालिक कहाँ रहे? यह सब धोखे की टट्टी हैं। तुम कहोगे, यह सब कोरी बकवाद है, रियासत इतनी बुरी चीज है तो उसे छोड़ क्यो नही देते? हा! यही तो रोना है कि इस रियासत ने हमे विलासी, आलसी और अपाहिज बना दिया। हम अब किसी काम के नहीं रहे। हम पालतू चिड़िया है, हमारे पंख शक्ति-हीन हो गये हैं। हममे अब उडने की सामर्थ्य नहीं है। हमारी दृष्टि सदैव अपने पिंजरे के कुल्हिये और प्याली पर रहती है। अपनी स्वाधीनता को मीठे टुकड़े पर बेच दिया है।

राय साहब के चेहरे पर एक दुस्सह आंतरिक वेदना के चिह्न दिखायी देने लगे। लेटे थे, कराह कर उठ बैठे। मुखाकृति विकृत हो गयी। पीड़ा से विकल हृदय-स्थल पर हाथ रखे हुए बोले, आह! बेटा, तुमने वह हलाहल खिला दिया कि कलेजे के टुकड़े-टुकड़े हुए जाते है। अब प्राण न बचेगें। अगर एक मरणासन्न पुरुष के शाप में कुछ शक्ति है तो तुम्हे इस रियासत का सुख भोगना नसीब न होगा। आँखो के सामने से हट जाओ। सभव हैं, मैं इस क्रोधावस्था में तुम्हें दोनो हाथो मे दबा कर मसल डालूं। मैं अपने आपे में नही हूँ। मेरी दशा मतवाले सर्प की सी हो रही है। मैरी आँखो से दूर हो जाओ और फिर कभी मुंह मत दिखाना। मेरे मर जाने पर तुम्हें