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प्रेमाश्रम

भला करे. उनके हृदय में दया आयी दो साल की मालगुजारी अदा कर दी, नहीं तो अब तक सारा गाँव बेदखल हो गया होता। इस पर फैजू चला जाता है। अब सुक्लू आ जाते हैं तो भीगी बिल्ली बन जाता है, लेकिन ज्यो ही वह चले जाते हैं फिर वही उपद्रव करने लगता है। इन गरीबो का कष्ट मुझसे नहीं देखा जाता। जिसे चाहता है मारता है डांट लेता है। एक दिन कादिर मियाँ के घर में आग लगवा दी। और तो और अब गाँव की बहूबेटियों की इज्जत-हुरमत भी बच्ती नहीं दिखायी देती। मनोहर के घर सास-बहू में रार मची हुई है। दोनों अलग-अलग रहती हैं। परसो रात की बात है, फैजू और कर्तार दोनों बहू के घर में घुस गये। उस बेचारी ने चिल्लाना शुरू किया। सास पहुँच गयी, और लोग भी पहुँच गये। दोनों निकल कर भागे। सवेरा होते ही इसकी कसर निकली। कर्तार ने मनोहर की दुलहिन को इतना माया कि बेचारी पड़ी हल्दी पी रही है। यह सब पाप मेरे सिवा और किसके सिर पड़ता होगा? मैं ही इस सारी विपद् लीला की जड़ हूँ। भगवान् मेरी न जाने क्या दुर्गत करेंगे! काहे भैया, क्या अब कुछ नहीं हों सकता? सुनते हैं तुम अपील करनेवाले हो, तो जल्दी कर क्यों नहीं देते? ऐसा न हो कि मियाद गुजर जाय। तुम मुझे तलब करा देना। मुझपर दरोग-हलफी का इलजाम जायेगा तो क्या! पर मैं अबकी सब कुछ सच-सच कह दूंगा। यही न होगा, मेरी सजा हो जायगी, गाँव का तो भला हो जायगा। मैं हजार पाँच सौ से मदद भी कर सकता हूँ।

प्रेमशंकर—हाईकोर्ट मे तो मिसल देख कर फैसला होता है, किसी के बयान नहीं लिये जाते।

बिसेसर—भैया, कुछ लेने-देन से काम चले तो दे दो, हजार-पाँच सौ का मुंह मत देखो। मुझसे जो कुछ फरमाओ उसके लिए हाजिर हूँ। यह बात मेरे मन में महीनों से समायी हुई है, पर आपको मुंह दिखाने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। आज कुछ सौदा लेने चला तो चौपाल के सामने फैजू मिल गये। कहने लगे—जाते हो तो यह रुपये लेते जाओ, मालिकों के घर भेजवा देना। मैंने रुपये लिए और डेवढ़ी पर जाकर छोटी बहू के पास रुपये भेज दिये। जब चलने लगा तो बड़ी बहू ने दीवानखाने मे मुझे बुलाया। उनको देख कर ऐसा जान पड़ा मानो साक्षात देवी के दर्शन हो गये। उन्होंने मुझे ऐसा-ऐसा उपदेश दिया कि आपसे क्या कहूँ। मेरी आंख खुल गयी। मन में ठान कर चला कि आपसे अपील दायर करने को कहूँ जिसमें मेरा भी उद्धार हो जाये। लेकिन दो-तीन बार आ-आ कर लौट गया। आपको मुँह दिखाते लाज आती थी। सूरज दूबते वक्त फिर आया, पर वही फाटक के पास दुविधा में खड़ा सोच रहा था कि क्या करू? इतने में आपके आदमियों ने देख लिया और आपकी शरण में ले आयें। मुझ जैसे झूठे दगाबाज आदमी का इतबार ही क्या? पर अब मैं सौगन्ध खा के कहता हूँ कि फिर जो मेरा बयान लिया जायेगा तो मैं एक-एक बात खोल कर कह दूंगा। चाहे उल्टी पड़े या सीधी। आप जरूर अपील कीदिए।

प्रेमशंकर विसेसर साह को महानीच, कपटी, अधम मनुष्य समझते थे। उनके