पृष्ठ:प्रेमाश्रम.pdf/२९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९९
प्रेमाश्रम

की क्या हस्ती है। यह ताप अनादि ज्योति की एक आभा है, यह दाह अनन्त शान्ति का एक मन्त्र है। इस ताप को कौन मिटा सकता है?

दूसरे दिन गायत्री ने ज्ञानशंकर को तार दिया, मैं आ रही हूँ, और शाम की गाड़ी से मायाशंकर को साथ ले कर बनारस चली।



४८

ज्ञानशंकर को बनारस आये दो सप्ताह से अधिक बीत चुके थे। संगीत-परिषद् समाप्त हो चुकी थी और अभी सामयिक पत्रों में उसपर वादविवाद हो रहा था। यद्यपि अस्वस्थ होने के कारण राय साहब उसमे उत्साह के साथ भाग न ले सके थे, पर उनके प्रबन्ध-कौशल ने परिषद् की सफलता मे कोई बाधा न होने दी। सन्ध्या हो गयी थी। विद्यावती अन्दर बैठी हुई एक पुराना शाल रफू कर रही थी। राय साहब ने उसके सैर करने के लिए एक बहुत अच्छी सेजगाडी दे दी थी और कोचवान को ताकीद की थी कि जब विद्या का हुक्म मिले, तुरन्त सवारी तैयार करके उसके पास ले जाये, लेकिन इतने दिनों से विद्या एक दिन भी कही सैर करने न गयी। उसका मन घर के धन्धो अधिक लगता था। उसे न थियेटर का शौक था, न सैर करने का, न गाने बजाने का। इनकी अपेक्षा उसे भोजन बनाने या सीने-पिरोने में ज्यादा आनन्द मिलता था। इस एकान्त-सेवन के कारण उसको मुखकमल मझया रहता था। बहुधा शिर-पीड़ा से ग्रसित रहती थी। वह परम सुन्दरी, कोमलागी रमणी थी, पर उसमे अभिमान का लेश भी न था। उसे माँग-चोटी, आइने-कची से अरुचि थी। उसे आश्चर्य होता था कि गायत्री क्योकर अपना अधिकाश समय बनाव सँवार में व्यतीत किया करती है। कमरे में अँधेरा हो रहा था, पर वह अपने काम मे इतनी रत थी कि उसे बिजली के बटन दबाने का भी ध्यान न था। इतने में राय साहब उसके द्वार पर आ कर खड़े हो गये और बोले-ईश्वर से बड़ी भूल हो गयी कि उसने तुम्हे दर्जिन बना दिया। अंधेरा हो गया, आँखो से सूझता नहीं, लेकिन तुम्हे अपने सुई-तागे से छुट्टी नहीं।

विद्या ने शाल समेट दिया और लज्जित हो कर बोली-थोड़ा सा बाकी रह गया था, मैंने सोचा इसे पूरा कर लें तो उठूँ।

राय साहब पलंग पर बैठ गये और कुछ कहना चाहते थे कि जोर से खाँसी आयी और थोड़ा सा खून मुंह से निकल पड़ा, आँखे निस्तेज हो गयी और हृदय मे विषम पीड़ा होने लगी। मुखाकार विकृत हो गया। विद्या ने घबरा कर पूछा–पानी लाऊँ? यह मरज तो आपको न था। किसी डाक्टर को बुला भेजूँ?

राय साहब-नहीं, कोई जरूरत नहीं। अभी अच्छा हो जाऊँगा। यह सब मेरे सुयोग्य, विद्वान् और सर्वगुण सम्पन्न पुत्र बाबू ज्ञानशंकर की कृपा का फल है।

विद्या ने प्रश्नसूचक विस्मय से राय साहब की ओर देखा और कातर भाव से जमीन की ओर ताकने लगी। राय साहब संभल कर बैठ गये और एक बार पीड़ा से