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प्रेमाश्रम

समझाऊँगी, उनसे विनय करूंगी कि मुझे इसी सम्पत्ति की लालसा नही है जिस पर आत्मा और विवेक का बलिदान किया गया हो। ऐसी जायदाद को मैरी तिलांजलि है। मेरा लड़का गरीब रहेगा, अपने पसीने की कमाई खायेगा, लेकिन जब तक मेरा थश चलेगा मैं उसे इस जायदाद की हवा भी न लगने दूँगी।



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गायत्री बनारस पहुँच कर ऐसी प्रसन्न हुई जैसे कोई बालू पर तड़पती हुई मछली पानी मे जी पहुँचे। ज्ञानशंकर पर राय साहब की धमकियों का ऐसा भय छाया हुआ था कि गायत्री के आने पर वह और भी सशक हो गये। लेकिन गायत्री की सान्त्वनाओं ने शनै शनै उन्हें सावधान कर दिया। उसने स्पष्ट कह दिया कि मेरा प्रेम पिता की आज्ञा के अधीन नहीं हो सकता। वह ज्ञानशंकर को अन्याय पीडित समक्षती थी और अपनी स्नेहमयी बातो से उनका क्लेश दूर करना चाहती थी। ज्ञानशंकर जब गायत्री की ओर से निश्चिन्त हो गये तो उसे बनारस के घाट और मन्दिरो की सैर कराने लगे। प्रात काल उसे ले कर गगा-स्नान करने जाते, संध्या समय बजरे पर या नौको पर बैठा कर घाटो की बहार दिखाते। उनके द्वार पर पंडों की भीड़ लगी रहती। गायत्री की दानशीलता की सारे नगर में धूम मच गयी। एक दिन वह हिन्दू विश्वविद्यालय देखने गयी और बीस हजार दे आयी। दूसरे दिन "इत्तहादी यतीमखाने का मुआइना किया और दो हजार रुपये विल्डिंग फड को प्रदान किये। सनातन धर्म के नेतागण गुरुकुल आश्रम के लिए चन्दा माँगने आये। चार हजार उनके नजर किये। एक दिन गोपाल मन्दिर में पूजा करने गयी और महन्त जी को दो हजार रुपये भेट कर आयी। आधी रात तक कीर्तन का आनन्द उठाती रही। उसका मन कीर्तन में सम्मिलित होने के लिए लालायित हो रहा था पर ज्ञानशंकर को यह अनुचित जान पड़ता था। ऐसा कीर्तन उसने कभी न सुना था।

इसी भाँति एक सप्ताह बीत गया। सन्ध्या हो गयी थी। गायत्री बैठी हुई बनारसी साड़ियों का निरीक्षण कर रही थी। वह उनमें से एक साड़ी लेना चाहती थी, पर रंग का निश्चय न कर सकती थी। एक-एक साड़ी को सिर पर ओढ़ कर आईने में देखती और उसे तह करके रख देती। कौन रंग सबसे अधिक खिलता है, इसका फैसला न होता था। इतने में श्रद्धा आ कर खड़ी हो गयी। गायत्री ने कहा, बहिन, भली आयी। बताओ, इसमे से कौन साड़ी लूँ? मुझे तो सब एक सी लगती है।

श्रद्धा ने मुस्कुरा कर कहा-मैं गँवारीन इन बातों को क्या समझूँ।

गायत्री-चलो, बातें न बनाओ। मैं इसका फैसला तुम्हारे ही उपर छोड़ती हूँ। एक अपने लिए चुनो और एक मेरे लिए।

श्रद्धा- आप ले लीजिए, मुझे जरूरत नहीं है। यह फिरोजी साड़ी आप पर खूब खिलेगी।