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प्रेमाश्रम

लाला प्रभाशंकर अपना काला चोगा पहने, एक केसरिया पाग बाँधे, मेहमान का स्वागत कर रहे थे। महिलाओं के लिए दूसरी और पर्दे डाल दिये गये थे। यद्यपि श्रद्धा को इन लीला से विशेष प्रेम न था तथापि गायत्री के अनुरोध से उसने महिलाओं के आदर-सत्कार का भार अपने सिर ले लिया था। आठ बजते-बजते पडाल दर्शको से भर गया, जैसे मैले मै रेलगाडियाँ ठस जाती है। मायाशंकर ने सबके आग्रह करने पर भी कोई पार्ट ने लिया था। मंडप के द्वार पर खड़ा लोगो के जूतो की रखवाली कर रहा था। इस वक्त तक शामियाने में बाजार सा लगा हुआ था, कोई हँसता था, कोई अपने सामनेवालो को धक्के देता था, कुछ लोग राजनीतिक प्रश्नो पर वाद-विवाद कर रहे थे, कही जगह के लिए लोगों में हाथापाई हो रही थी। बाहर सर्दी से हाथपाँच अकड़े जाते थे, पर मंडप में खासी गर्मी थी।

ठीक नौ बजे पर्दा उठा। राधिका हाथ में वीणा लिये, कदम के नीचे खड़ी सूरदास का एक पद गा रही थी। यद्यपि राधिका का पार्ट उस पर फबता न था, उसकी गौरवशीलता, उसकी प्रौढता, उसकी प्रतिभा एक चंचल ग्वाल कन्या के स्वभावानुकूल में थी, किंतु जगमगाहट ने सबकी समालोचक शक्तियों को वशीभूत कर लिया था। सारी सभा विस्मय और अनुराग में डूबी हुई थी, यह तो कोई स्वर्ग की अप्सरा है! उसकी मृदुल वाणी, उसका कोमल गान, उसके अलंकार और भूषण, उसके हाव-भाव उसके स्वर-लालित्य, किस-किस की प्रशंसा की जाय! वह एक थी, अद्वितीय थी, कोई उसका सानी, उसकी जवाब में था।

राधा के पीछे तीन सखियाँ और आयी---ललिता, चन्द्रावली और श्यामा। सब अपनी-अपनी बिरह-कथा सुनाने लगी। कृष्ण की निष्ठुरता और कपट की चर्चा होने लगी। उस पर घरवालों की रोक-थाम, डाँट-डपट भी मारे डालती थी। एक बोली-- मुझे तो पनघट पर जाने की रोक हो गयी है, दूसरी बोली- मैं तो द्वार पर खड़ी हो कर झाँकने भी नहीं पातीं, तीसरी बोली–जब दही बेचने जाती हैं तब बुढ़िया साथ हो लेती है। राधिका ने सजल नेत्र हो कर कहा, मैं तो बदनाम हो गयी, अब किसी से उनकी बात नहीं हो सकती। ललिता बोली---वह आप ही निर्दयी है, नहीं तो क्या मिलने का कोई उपाय ही न था?

चन्द्रावली-उन्हें हमको जलाने और तड़पाने में आनन्द मिलता है।

श्यामा---यह बात नहीं, वह हमारे घरवालो से डरते हैं।

राधा---चल, तू उनको यों ही पक्ष लिया करती है। बड़े चतुर तो बनते हैं? क्या इन बुद्ध को भी घतार नहीं बता सकते? बात यह है कि उन्हें हमारी सुध ही नहीं है।

ललिता---चलो, आज हम सब उनको परखे।

इस पर सब सहमत हो गयी। इधर-उधर चौकन्नी आँखो से ताक-ताक कर हाथ से बता-बता कर, भौहे नचा-नचा कर आपस में सलाह होने लगी। परीक्षा में क्या रूप होगा, इसका निश्चय हो गया। चारो प्रसन्न हो कर एक गीत गाती हुई स्टेज से चली गयी। पर्दा गिर गया। फिर पर्दा उठा। बृक्षों के समूह मै एक छोटा सा गाँव दिखाई