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प्रेमाश्रम

दिया। फूस के कई झोपड़े थे, बहुत ही साफ-सुथरे, फूल-पत्तियों से सजे हुए। उनमें कहीं-कहीं गायें बँधी हुई थी, कहीं बछड़े किलोलें करते थे, कहीं दूध बिलोया जाता था। बड़ा सुरम्य दृश्य था। एक मकान में चन्द्रावली पलंग पर पड़ी कराह रही थी। उसके सिरहाने कई आदमी बैठे पंखा झल रहे थे, कई स्त्रियाँ पैर की ओर खड़ी थी। 'बैद! बैद।' की पुकार हो रही थी। दूसरी झोपड़ी में ललिता पड़ी थी। उसके पास भी कई स्त्रियाँ बैठी टोना-टोटका कर रही थी, कोई कहती थी, आसेव है, कोई चुडैल का फेर बतलाती थी। औझा जी को बुलाने की बातचीत हो रही थी। एक युवक खड़ा कह रह था- यह सब तुम्हारा ढकोसला है, इसे कोई हृद्रोग है, किसी चतुर वैद्य को बुलाना चाहिए। तीसरे झोपड़े मे श्यामा की खटोली थी, वहाँ भी यही वैद्य की पुकार थी। चौथा मकान बहुत बड़ा था। द्वार पर बड़ी-बड़ी गायें थी। एक और अनाज के ढेर लगे हुये थे, दूसरी और मटको में दूध भरा रखा था। चारो तरफ सफाई थी। इसमें राधिका रुग्णावस्था में बेचैन पड़ी थी। उसके समीप एक पंण्डित जी आसन पर बैठे हुए पाठ कर रहे थे। द्वार पर भिक्षुकों को अन्नदान दिया जा रहा था। घर के लोग राधिका को चिन्तित नेत्रों से देखते थे और 'बैद। बैद!' पुकारते थे।

सहसा दूर से आवाज आयी बैद। बैद। सब रोगो का बैद, काम का बैद, क्रीडा का बैद, मोह का बैद, लोभ का बैद, धर्म का बैद, कर्म का बैद, मोक्ष का बैद! अर का मैल निकाले, अज्ञान का मैल निकाले, ज्ञान की सीगीं लगाये, हृदय की पीर मिटाये। बैद! बैद!! लोगो ने बाहर निकल कर वैद्य जी को बुलाया। उसके काँधे पर झोली थी, सिर पर एक लाल गोल पगडी, देह पर एक ही बनात की गोटेदार चपकने दी। आँखों में सुरमा, अघरो पर पान की बाली, चेहरे पर मुस्कुराहट थी। चाल-ढाल से बकापन बरसता था स्टेज पर आते ही उन्होंने झोली उतार कर रख दी और बाँसुरी बजा बजा कर गाने लगे----

मैं तो हरत विरह की पीर।

प्रेमदाह को शीतल करता जैसे अग्नि को नीर।

में तो हरत••••••

निर्मल ज्ञान की बूटी दे कर देत हृदय को धीर

मैं तो हरत•••

राधा के घरवाले उन्हें हाथो हाथ अन्दर ले गये। राधिका ने उन्हें देखते ही मुस्कुरा कर मुँह छिपा लिया। वैद्य जी ने उसकी नाड़ी देखने के बहाने से उसकी गोरी गोरी कलाई पकड़ कर धीरे से दबा दी। राधा ने झिझक कर हाथ छुड़ा लिया; तब प्रेमनीति की भाषा में बाते होने लगी।

राघा-नदी में अथाह जल है।

वैद्य–जिसके पास नौका है उसे जल का क्या भय?

राधा–आँधी है, भयानक लहरे हैं और बड़े-बडे भयंकर जलजन्तु हैं।

बैद्य मल्लाह अतुर है।