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प्रेमाश्रम

अब आपको कष्ट होगा। क्यों न बँगले में एक कमरा आपके लिए खाली करा दें? वहाँ आप ज्यादा आराम से रह सकेगी।

गायत्री ने विद्या की तरफ देखते हुए कहा—क्यो विद्या, बंगले में चली जाऊँ? बुरा तो न मानोगी? मेरै यहाँ रहने से तुम्हारे आराम में विघ्न पडेगा। मैं बहुधा भजन गाया करती हूँ।

विद्या—तुम मेरे आराम की चिन्ता मत करो, मैं इतनी नाजुक दिमाग नही हूँ। हाँ, अगर तुम्हें यहाँ कोई असमंजस हो तो शौक से बँगले में चली जाओ।

ज्ञानशंकर ने गायत्री का असवाव उठा कर बँगले में रखवा दिया। गायत्री ने भी विद्या से और कुछ न कहा। उसे मालूम हो गया कि यह इस समय ईर्षा के मारे मरी जाती है। और ऐसा कौन प्राणी होगा, जो ईर्षा की क्रीडा का आनन्द न उठाना चाहे? उसने एक बार विद्या को सगर्व नेत्रों से देखा और जीने की तरफ चली गयी।



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रात का एक बजा था। गायत्री वीणा पर गा रही थी कि ज्ञानशंकर ने कमरे में प्रवेश किया। उन्होने आज देवी से वरदान मांगने का निश्चय कर लिया था। लोहा लाल हो रहा था, अब आगा-पीछा करने का अवसर न था, ताबडतोड चोंटों की जरूरत थी। एक दिन की देर भी बरसो के अविरल उद्योग पर पानी फेर सकती थी, जीवन की समस्त आशाओं को मिट्टी में मिला सकती थी। विद्या की एक अनुचित बात सारी बाजी को पलट सकती थी, उसका एक द्वेपमूलक सकेत उनके सारे हवाई किलो को विध्वंस कर सकता था। कदाचित् किसी सेनापति को रणक्षेत्र में इतना महत्त्वपूर्ण और निश्चयकारी अवसर न प्रतीत होगा, जितना इस समय ज्ञानशंकर को मालूम हो रहा था। उनकी अवस्था उस सिपाही की सी थी जो कुछ दूर पर खडा शस्त्रशाला में आग की चिनगारी पडते देखें और उसको बुझाने के लिए बेतहाशा दौडै। उसका द्रुतवेग कितना महत्त्वपूर्ण, कितना मूल्यवान है। एक क्षण का विलंभ सेना के सर्वनाश, दुर्ग के दमन, राज्य के निक्षेप और जाति के पददलित होने का कारण हो सकता है। ज्ञानशंकर आज दोपहर से इसी समस्या के हल करने मे व्यस्त थे। क्योकर विषय को छेड़े? ऐसा अन्दाज होना चाहिए कि मेरी निष्काम-वृत्ति का पर्दा न खुलने पाये। उन्होने अपने मन में विषय-प्रवेश का ऐसा क्रम बाँधा था कि मायाशंकर को गोद लेने का प्रस्ताव गायत्री की ओर से हो और मैं उसके गुण-दोषो की निस्वार्थ भाव से व्याख्या करूं। मेरी हैसियत एक तीसरे आदमी की सी रहे, एक शब्द से भी पक्षपात न प्रकट हो। उन्होने अपनी बुद्धि, विचार, दूरदर्शिता और पूर्व-चिन्ता से कभी इतना काम न लिया था। सफलता मे जो बाधाएँ उपस्थित होने की कल्पना हो सकती थी उन सभी की उन्होने योजना कर ली थी। अपने मन में एक-एक शब्द, एक-एक इशारें, एक-एक भाव का निश्चय कर लिया था। वह एक केशरिया रंग की रेशमी चादर ओढ़े हुए थे, लम्बे केश चादर पर बिखरे