पृष्ठ:प्रेमाश्रम.pdf/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४
प्रेमाश्रम


टैक्स को बढ़ाकर दुगुना-तिगुना कर देंगे। यदि इशारा हो जाय कि अब की तकावी जरा हाथ रोक कर दी जाये तो समझ लीजिए कि वह बंद हो जायगी। इन महानुभावों की बातें सुन कर ऐसी घृणा होती है कि इनका मुंह न देखूं। न कोई वैज्ञानिक निरूपण, न कोई राजनैतिक या आर्थिक बात, न कोई साहित्य की चर्चा। बस मैंने यह किया, साहब ने यह कहा, तो मैंने यह उत्तर दिया। आपने यथार्थ कहता हूँ, कोई छंटा हुआ शोहदा भी अपनी कपट-लीलाओं की डींग यों न मारेगा। खेद तो यह है कि इस रोग से पुराने विचार के बुड्ढे ही ग्रसित नहीं, हुमारा नवशिक्षित वर्ग उनसे कहीं अधिक रोग से जर्जरित दिख पड़ता है। मालें, मिल और स्पेन्सर सभी इस स्वार्थ सिद्धांत के सामने दब जाते हैं। अजी, यहाँ ऐसे-ऐसे भद्र पुरुष पड़े हुए हैं जो खानसामों और अरदलिओं की पूजा किया करते हैं, केवल इसलिए कि वह साहेब से उनकी प्रशंसा किया करें। जिसे अधिकार मिल गया है समझने लगता है,

कि अब मैं हाकिम हूँ, अब जनता से देशबन्धओं में मेरा कोई संबंध नहीं हैं। अँगरेज अधिकारियों के सम्मुख जायेंगे तो नम्रता, विनय और शील के पुतले बन जायेंगे, मानो ईश्वर के दरबार में खड़े हैं, पर जब दौरे पर निकलेंगे तो प्रजा और जमींदारों पर ऐसा रोब जमायेंगे मानों उनके भाग्य के विधाता हैं।

ज्वालासिंह ने स्तिथि को खूब बढ़ा कर दर्शाया, क्योंकि इस विषय में वह ज्ञानशंकर के विचारों ने परिचित थे। उनका अभिप्राय केवल यह था कि इस समय दयाशंकर के अभियोग की चर्चा न आने पाए।

ज्ञानशंकर ने प्रसन्न हो कर कहा, मैंने तो आपसे पहले ही दिन कहा था, किंतु आपको विश्वास ने आता था। अभी तो आपको केवल अपने सहवर्गियों की कपटनीति का अनुभव हुआ हैं। कुछ दिन और रहिए तो अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की चालें देख कर तो आप दंग रह जायेंगे। यह सब आपको कठपुतली बना कर नचाएगें। बदनामी से बचने का इसके सिवा और उपाय नहीं है कि उन्हें मुंह न लगाया जाय। आपका अहमद ईजादहूसेन एक ही घाघ हैं, उससे होशियार रहिएगा। वह तरह-तरह से आपको अपने पंजे में लाने की कोशिश करेगा। आज ही मैंने उसके मुंह से ऐसी बातें सुनी हैं जिनसे विदित होता हैं कि वह आपको धोखा दे रहा है। उमने आपसे कदाचित मेरी और से दयाशंकर की सिफारिश की है। यद्यपि मुझे दयाशंकर में उतनी ही सहानुभूति है जितनी भाई को भाई के साथ हो सकती हैं, तथापि मैं ऐसा धृष्ट नहीं हूँ कि मित्रता से अनुचित लाभ उठाकर कर न्याय का बाधक बनूँ। मैं कुमार्ग का पक्ष कदापि न ग्रहण करूंगा; चाहे मेरे पुत्र के ही सम्बन्ध में क्यों न हो। मैं मनुष्यत्व को भ्रातृप्रेम में उच्चतर समझता हूँ। मैं उन आदमियों में हूँ कि यदि ऐसी दशा में आपको सहृदयता की और झुका हुआ देखूं तो आपको उनसे बाज रखूँ।

ज्वालासिंह मनोविज्ञान के ज्ञाता थे। समझ गये कि यह महाशय इस समय अपने चाचा से बिगड़े हुए हैं। यह नीतिपरायणता उसी का बुखार है। द्वेष और वैमनस्य कहाँ तक छिपाया जा सकता है, इसका अनुभव हो गया। उनकी दृष्टि में ज्ञानशंकर