पृष्ठ:प्रेमाश्रम.pdf/३१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२२
प्रेमाश्रम

की व्यवस्था कर देगे मैं निश्चिन्त हो जाऊँगी और फिर यावज्जीवन हम मे वियोग न होगा। मेरी तो यह राय है कि एक ट्रस्ट' कायम कर दीजिए। मेरे पतिदेव की भी यह इच्छा थी।

ज्ञानशंकर-दृस्ट कायम करना तो आसान है, पर मुझे आशा नही है कि उससे आपको उद्देश्य पूरा हो। मैं पहले भी दो-एक बार ट्रस्ट के विषय में अपने विचार प्रकट कर चुका हूँ। आप अपने विचार में कितने ही नि स्पृह, सत्यवादी दृस्टियों को नियुक्त करे, लेकिन अवसर पाते ही वे अपने घर भरने पर उद्यत हो जायेंगे। मानव स्वभाव बड़ा ही विचित्र है। आप किसी के विषय में विश्वस्त रीति से नहीं कह सकती कि उसकी नीयत कभी डॉवाडोल न होगी, वह सन्मार्ग से कभी विचलित न होगा। हम तो वृन्दावन में बैठे रहेगे, यहाँ प्रजा पर नाना प्रकार के अत्याचार होंगे। कौन उसकी फरियाद सुनेगा? सदावत की रकम नाच मुजरे में उडेंगी, रासलीला की रकम गाईंन-पार्टियों में खर्च होगी, मन्दिर की सजावट के सामान दृस्टियों के दीवानखाने में नजर आयेगे, साघु-महात्माओं के सत्कार के बदले यारो की दावतें होगी, आपको यश की जगह अपयश मिलेगा। यो तो कहिए आपकी आज्ञा का पालन कर दूं, लेकिन दृस्टियों पर मेरा जरा भी विश्वास नहीं है। आपका उद्देश्य उसी दशा में पूरा होगा जब रियासत किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में हो जो आपको अपना पूज्य समझती हो, जिसे आपसे श्रद्धा हो, जो आपका उपकार माने, जो दिल से आपकी शुभेच्छाओं का आदर करता हो, जो स्वयं आपके ही रंग ही रँगा हुआ हो, जिसके हृदय में दया और प्रेम हो; और यह सब गुण उसी मनुष्य में हो सकते है जिसे आपसे पुत्रवत् प्रेम हो, जो आपको अपनी माता समझता हो। अगर आपको ऐसा कोई लड़का नजर आये तो मैं सलाह दूंगा उसे गोद ले लीजिए। इससे उत्तम मुझे और कोई व्यवस्था नहीं सूझती। संभव है कुछ दिनों तक हमको उसकी देख-रेख करनी पड़े, किंतु इसके बाद हम स्वच्छन्द हो जायेंगे। तब हमारे आनन्द और बिहार के दिन होंगे। मैं अपनी प्यारी राधा के गले में प्रेम का हार डालूंगा, उसे प्रेम के राग सुनाऊँगा, दुनिया की कोई चिन्ता, कोई उलझन, कोई झोका हमारी शांति में विघ्न ने डाल सकेगा।

गायत्री पुलकित हो गयी। उस आनन्दमय जीवन का दृश्य उसकी कल्पना मे सचित्र हो गया। उसकी तबियत लहराने लगी। इस समय उसे अपने पति की वह वसीयत माद न रही जो उन्होने जायदाद के प्रबन्ध के विषय में की थी और जिसका विरोध करने के लिए वह ज्ञानशंकर से कई बार गम हो पड़ी थी। वह ट्रस्ट के गुणदोष पर स्वयं कुछ विचार न कर सकी। ज्ञानशंकर का कथन निश्चयवाचक था। ट्रस्ट पर से उसका विश्वास उठ गया। बोली- आपका कहना यथार्थ है। दृस्टियो का क्या विश्वास है। आदमी किसी के मन तो पैठ नहीं सकता, अन्दर का हाल कौन जाने?

वह दो-तीन मिनट तक विचार में मग्न रहीं। सोच रही थी कि ऐसा कौन लड़का है जिसे मैं गोद ले सकें। मन ही मन अपने सम्बन्धियो और कुटुम्बियो का दिग्दर्शन किया, लेकिन यह समस्या हल न हुई। लड़के थे, एक नही अनेक, लेकिन किसी न